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जैनराजतरंगिणी अतएव काश्मीरी नाव से धान बाहर से लाकर सैनिकों के प्रवास वेतन अदा किये । प्रतिदिन पाँच-सात लोग मरते थे। दोनों दलों मे संघर्ष होता था।
सैयिद एव काश्मीरियो के संघर्ष से चौथा तरंग भरा है। परिखा आदि तैयार कर नवीन रण कौशल के साथ संघर्ष होता रहा। इस युद्ध में क्रूरता का जो ताण्डव हुआ, उसे देख एवं सुनकर मानवता लज्जित हो जाती है।
काश्मीरियों ने पक्ष मजबूत करने के लिए, जहाँगीर मार्गेश को बुलाया। लेखों से प्रेरित होकर, मार्ग पति ने पर्णोत्स मार्ग से काश्मीर में प्रवेश किया। उसका आगमन सुनकर, सैयिद कोंप उठे। सैयिदों ने सन्धि की इच्छा प्रकट की। मार्गेश ने फारसी, लिपि मे पत्र भेजा। आरोप लगाया-'बहराम खां के के पुत्र की हत्या की गई । नुरुल्ला आदि का वध किया गया। शिशु राजा का कोश लूट गया । मन्त्रणा के पूर्व सैयिद शस्त्र त्याग दे। बाल राजा का कोश यथास्थान रख दिया जाय। काश्मीरी राजकाज पूर्ववत् करें।'
सैयिदों ने शर्त नहीं मानी । सन्धि वार्ता टूट गई। दोनों दलों में पुनः संघर्ष होने लगा । संघर्ष का लाभ उठाकर तस्कर, डॉम्ब आदि नगर मे लूटपाट करने लगे। कभी सैयिद पक्ष जीतता तो कभी काश्मीरी । संघर्ष मध्य ही आकाश मे एक दीप्त उल्का उत्पन्न हुई। वह ज्वाला पुंज उत्तर से दक्षिण जा रहा था।
सैयिदों ने पंजाब से तातार खा की सहायता प्राप्त की। तातार खां ने तुरुष्को की सेना भेज दी। किन्तु वह सेना संघर्ष मे नष्ट हो गई। दो सहस्र विदेशी सैनिक काश्मीरियों द्वारा मारे गये । वितस्ता के दोनों तटों पर काश्मीरी तथा सैयिद सेनायें थी। दोनों में निरन्तर संघर्ष होता रहा। दोनों दलों में किसी की भी विजय मे जनता को सन्देह था। काश्मीरियों ने तीन मार्गों से सैयिदो पर आक्रमण किया। संघटित सैन्य भेद करने का निश्चय किया। काश्मीरियों ने अपने तथा अन्य काश्मीरी सैनिको मे भेद जानने के लिए, अपने सैनिकों के शिरों पर पत्र शाखा रख लिये।
मद्रो ने व्यूह वध्य युद्ध किया। घनघोर युद्ध के पश्चात सैयिद पलायित हो गये। सैयिदों एवं काश्मीरियों का यह संघर्ष लौ० ४५६० = सन् १४८४ ई० श्रावण मास, प्रतिपद को हुआ था। काश्मीरियों की विजय हुई। युद्ध में दो सहस्र सैनिक मारे गये । बाल राजा सैयिदों के शिकंजे से निकलकर, काश्मीरियों के प्रभाव में आ गया।
विजय पश्चात् बाबा सैयिद हमदान खानकाह का जीर्णोद्धार हआ। अली खां आदि सैयिदों की सम्पति हरण कर, उन्हें काश्मीर से निर्वासित कर दिया गया। परशुराम काश्मीरी मन्त्रियों से सत्कृत होकर, मद्र देश लौट गया।
जिन लोगों ने काश्मीरियों का पक्ष लिया था, वे सैयिदों के चले जाने पर, योग्यतानुसार सरकारी पद ग्रहण किये । जल्लाल ठाकुर नाग्राम के मियाँ हस्सन की सामग्री तथा उसके पुत्र लहर आदि की जागीर प्राप्त किये । जहांगीर ने भांगिल राष्ट्र तक खूयाँ आदि प्रमेयों को ले लिया। सैफ डामर मक्षिकाश्रम आदि राष्ट्रों का स्वामी हुआ। उसके सहोदर भाई अन्य ग्रामादि लिये। जोन राजानक परिहासपुर का स्वामी बना । देश में ठाकुर, डामर तथा राजानक तीन दल काश्मीरियों के थे। वे सब रचनात्मक कार्यों में लग गये।
सैयिदों के काश्मीरी रंगमंच से लुप्त होने पर, काश्मीरी परस्पर लड़ने लगे। राजकर्मचारी पिशुन होते है । उन्होंने मन्त्रियो में परस्पर मन मुटाव उत्पन्न कर दिया। मार्गपति की वृद्धि एवं अधिकार बहुतो