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१ : १ : २४-२५ ]
श्रीवरकृता
कमलाञ्चिते ।
नेत्रोज्ज्वले लसद्धर्म्यशब्दा यस्य श्रीवसन्नित्यं वदने सदनेऽपि च ॥ २४ ॥
२४. जिसके सुन्दर नेत्र एवं सुरम्य शब्दों से पूर्ण कमलवत् वदन में तथा चमकते रेशम एवं मनोहारी शब्दों से सम्पन्न लक्ष्मी युक्त सदन में नित्य श्री निवास करती थी।
बङ्गालमालवा भीरगौड कर्णाटदेशगा यत्कीर्ती रागमालेव
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भूवामृतवर्षिणी ।। २५ ।।
२५. बंगाल, मालव े, आभीर, गौड़, कर्नाट', देशगामीनी जिसकी कीर्ति, रागमाला सदृश अमृतवर्षिणी हुई।
बीच के सम्बन्ध को समवाय कहा है । यह तो उन दो पदार्थों के बीच भी रहता है, जिनका आपस में कार्यकारणभाव नही है, जैसे द्रव्य (परमाणु) और सामान्य द्रव्यत्व अथवा द्रव्य और विशेष ।
समवाय के विषय मे वैशेषिक दर्शन की दो और मान्यताएँ है—एक यह कि समवाय का प्रत्यक्ष नहीं होता है और दूसरी यह कि समवाय एक ही है, अनेक नही । सम्बद्ध पदार्थो की भिन्नता से समवाय मे परस्पर भिन्नता, जो दीखती है, वह मात्र औपचारिक है।
इस श्लोक से यह भाव निकलता है कि वह राजा कणाद की चलाई परम्परा के परीक्षण की शक्ति भी रखता था । अन्ध-क्रियाहीन टीकाकारों ने पुरानी परम्परा से अनेक अनुपत्तियों को जन्म देने वाले, जैसा बौद्धों ने स्पष्ट कहा है, सामान्य पदार्थ को नही मान कर भी, अपनी उच्च विवेकशक्ति के कारण समाज में प्रतिष्ठित हो चुका था। इस वक्तव्य में संक्षेप से, राजा की विचारशक्ति के उत्कर्ष पर प्रकाश डाला गया है ।
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कणाद के द्वारा प्रवर्तित वैशेषिक दर्शन इस पूरे जगत् की एक व्यावहारिक तथा प्रामाणिक ब्याख्या करता है । जगत् के जड़ तथा चेतन पदार्थों को तर्क के आधार पर छः पदार्थो द्रव्य, गुण, कर्म, सौमान्य, विशेष, समवाय तथा अभाव को लेकर सात पदार्थों में विभाजित कर उसकी स्वाभाविक व्याख्या प्रस्तुत जै. रा. २
करता है। इसके प्रथम तीन पदार्थ तो वास्तविक है और शेष काल्पनिक । इन काल्पनिक पदार्थो के अस्तित्व को लेकर अन्य दार्शनिकों नेविशेषतः बौद्धों ने इसकी बड़ी आलोचना की है । किन्तु इस आलोचना से तो दर्शन की प्रतिष्ठा और बढती ही रही है। इसके पदार्थों मे स्वामाविकता तथा व्यावहारिकता को देख कर ही आलोचर्को ने इसे पवार्थ की संज्ञा दी है। यदि सभ पूछा जाय, तो यथार्थ का पूरा स्वरूप इसी दर्शन में प्रतिबिम्बित हुआ है, न्याय आदि दर्शनों में नहीं । इसी जगत् के माध्यम से इससे ऊपर उठने की प्रेरणा प्रदान करना, इसकी सबसे प्रमुख विशेषता है । बहुत सम्भव है कि इसी के आधार पर इसे 'वैशेषिक' कहा गया है ।
पाद-टिप्पणी: पाठ-बम्बई
बंगाल, मालव, आभीर, गौड़, कर्नाट शब्द श्लेष है, उनका प्रयोग यहाँ देश एवं राग दोनों अर्थों में किया गया है ।
२५. (१) बंगाल वर्तमान बंगाल प्रदेश तथा बंगाल राग दोनों अभिप्रेत है । बंगाल राग लुप्त हो गया है । पुण्डरीक विट्ठल अकबर के दरबार तथा बुरहानपुर के खान के यहाँ इस राग को गाते थे। यह मालव-गोड़ अर्थात् आधुनिक भैरव