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१ : १ : २२-२३ ]
श्रीवरकृता
धर्मराजोपमात् तस्मात् तास्ता नरकयातनाः ।
अपराधानुसारेण पापाः केचिद् द्विषोऽभजन् ।। २२ ।।
२२ धर्मराज' (यम) सदृश, उस ( जैनुल आबदीन) से अपराध के अनुसार तत् तत् नर्क यातनायें कुछ पापी शत्रुओं ने प्राप्त किया।
यो
द्रव्यगुणसत्कर्मसमवायविशेषभृत् । नानार्थपरिपूर्णताम् ॥ २३ ॥
असामान्योऽप्यधाच्चित्रं
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२३. द्रव्य, गुण, सत्कर्म सामान्य विशेष" समवाय' युक्त जो राजा असामान्य होकर
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भी आश्चर्य है अनेक प्रकार के अर्थ से परिपूर्ण था ।
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तप जाता है। गरमी बढ जाती है। राजस्थान के मरुस्थल मे उदयपुर से अजमेर होते दिल्ली आषाढ मास मे आया हूँ । भयंकर गर्मी पड़ती है । उस समय किंचित मात्र शीतलता का अनुभव सुखप्रद होता है । अलीशाह का राज्य गृहभट्ट के अत्याचार, उत्पीड़न तथा गृहयुद्ध के कारण भयावह हो गया था । उसके गैर-काश्मीरी सेनानी काश्मीर मे तप गये थे । उनके ताप से जनता त्रस्त हो उठी थी । जैनुल आबदीन का काल इस भयंकर ताप के पाश्चात् चन्दन लेपतुल्य सुखकारी प्रतीत होता था । हितोपदेश मे श्री - खण्ड शब्द का प्रयोग इसी अर्थ मे किया गया है । 'श्रीखण्ड विलेयनं सुखयति' (हि० १९७) | पाद-टिप्पणी :
पाठ: बम्बई ।
२२ (१) धर्मराज यम का विशेषण धर्मराज धर्मपालक, न्यायकर्ता, न्यायाधीश आदि धर्म पूर्वक राज एवं न्याय करनेवाले के लिये विशेषण रूप में प्रयोग किया जाता है। यूषिष्ठिर धर्मराज है जैनुल आबदीन की तुलना धीवर धर्मराज से उसकी न्यायप्रियता के कारण करता है। धर्मराज किंवा मनुष्यों के कर्म के अनुसार, पापियों को उनके अपराध के अनुसार, निःसंकोच दण्ड देते है । श्रीवर जैनुल आबदीन के सम्बन्ध मे भी इसी ओर संकेत करता है कि उसने धर्मराज के समान पापी शत्रु अपराधियों को धर्मानुसार दण्ड दिया था। श्लोक:
१ : १ ३६ में जैनुल आबदीन के गुप्तचर का वर्णन किया गया है। धर्मराज के भी गुप्तचर होते हैं। ऋग्वेद मे उद्धरण मिलता है । यम के दो श्वान है । उन्हे चार आँखे होती है। वे यम के गुप्तचर है। लोगों के मध्य विचरण करते हुये उनके कार्यों का निरीक्षण करते है (ऋ० : १० : ९७ . १६) । इसी प्रकार उल्लू या कपोत यम का दूत माना गया है (ऋ० : १० १६५ . ५) । मानव अपने कर्मो के अनुसार स्वर्ग एवं नरक भोगता है । उनका निश्चय धर्मराज करता है ।
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( विष्णुधर्मोत्तरपुराण २ १०३ : ४-६, पराशरमाधवीय २: ३ २०८ २०९ प्रायश्चित्तसार : २१५ विष्णु० ३७, १९, ३५ ब्रह्मा २२९ ६५; ३ : १३ : ६७ : ५९-७९) । पाद-टिप्पणी
२३. (१) द्रव्य श्रीवर मे वैशेषिकदर्शन के सिद्धान्त का प्रतिप्रादन किया है।
'धर्मविशेष प्रसूताद् द्रव्य-गुण-कर्म-सामान्यविशेषसमवायानाम पदार्थाना साधर्म्य वैधयां तत्वज्ञानान्निःश्रेयसम् (११४) ' 'धर्मविशेष से उत्पन्न हुआ जो द्रव्प, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय पदार्थों का साधर्म्य और वैधर्म्य से तत्त्वज्ञान पैदा होता है, उससे मोक्ष होता है ।'
वैशेषिक ने पदार्थों का वर्गीकरण किया है। पदार्थ के दो वर्ग है-भाव एवं अभाव । भाव के दो वर्ग 'सत्ता- समवायी' तथा 'स्वात्मसत्' है। सत्ता समवायी