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भूमिका उसके समीप अनुज तथा आत्मज थे। सिंहासन पद कोशेश हस्सन ने पुष्प पूजा युक्त हैदर शाह का २, ज तिलक किया। पितृव्य बहराम खाँ को उसने नाग्राम की जागीर दी । पुत्र को क्रमराज्य तथा इक्षिका दिया। पुत्र युवराज घोषित किया गया। राजपुरी, सिन्धुपति आदि निमन्त्रित राजाओं को, राजोचित श्री से अलंकृत कर, विदा किया । सैयिद नासिर का पुत्र मियाँ हस्सन बहुरूप आदि राष्ट्रों का स्वामी बनाया गया।
युवराज हसन शाह का विवाह मियाँ हस्सन की पुत्री से किया गया । इस प्रकार पिता, पुत्र तथा पितामह तीनों की रानियाँ सैय्यिद वंशीय हई। भाँगिल के मार्गेश जमशेद से लेकर, जहागीर मार्गपति को दिया गया।
हैदरशाह के राज्यकाल में पूर्ण नापित प्रभावशाली हो गया। दुष्ट मन्त्रियों को प्रेरणा पर, राजा अविवेक पूर्ण कार्य करने लगा। राजा वीणावादक था। वीणा वादन की शिक्षा भी देता था।
___ आदम खाँ राज्य प्राप्ति की लालसा से, मद्र देश से, पर्णोत्स पहुँचा। राजा को हस्सन कोशेश जिसने राज तिलक किया था, उस पर सन्देह हो गया। उसने उसके वध करने का संकेत किया।
प्रातः काल हस्सन कोशेश आदि राजभवन पहुंचे। छल से राजधानी मण्डप मे उनकी हत्या करा दी गयी । हस्सन के पक्षपाती कारागार में डाल दिये गये । पुरानी मन्त्रिसभा समाप्त कर दी गयी।
आदम खाँ ने जब हस्सन कोशेश आदि की हत्या का समाचार सुना, तो जैसे आया था लौट गया । कनिष्ठ भ्राता, बहराम खाँ आदि प्रमुख व्यक्ति हत्या काण्ड देखकर, शंकित हो गये । सुल्तान ने भाई बहराम खाँ को सुरक्षा का विश्वास दिया।
मद्र राजा मणिक देव और मुसलमानों में युद्ध हुआ। आदम खाँ का मामा माणिक्य देव था। आदम खाँ मामा के पक्ष से लड़ता मारा गया। मुख पर वाण लगने से मृत्यु हो गयी। हैदर शाह ने बड़े भ्राता आदम खाँ का शव मंगाकर, श्रीनगर मे उसकी माता के समीप दफन किया।
पिता जैनुल आबदीन के समान हस्सन शाह भी पुष्प लीला करने मडव राज्य गया। उसी समय वहाँ भूकम्प हुआ। आकाश मे पुच्छल तारा सर्व प्रथम बहराम खाँ ने देखा। दिन में भी तारा दिखायी पड़ता था।
जैनुल आबदीन के समय ब्राह्मणों का दमन बन्द हो गया था। पूर्ण नापित अत्याचार से हिन्दू पीड़ित किये गये । ब्राह्मण लोग 'मैं भट्ट नहीं हैं' 'मैं भट्ट नही हूँ' चिल्लाने लगे। प्रतिमा भंग की राजा ने आज्ञा दी। जैनुल आबदीन ने विद्वानों को भूमि आदि जागीर मे दी थी, वे सब भी छीन ली गयी।
राजा के सेवक खुलेआम लूटपाट करते थे । राजा शय्या पर पड़ा करवटें बदलता रहता था। उसने राज कार्य में रुचि लेना त्याग दिया। लक्ष्मीपुर की राजधानी इसी समय जलकर भस्म हो गयी । बलाढयपुर समीपस्थ मकान भी जल गये । प्रसन्न होकर राजप्रासाद पर चढ़कर राजा घरों को जलते हुए देखा । पान लीला करने लगा। पिशुनो की पिशुनता पर राजा ने सेना सहित पुत्र को बाहर भेज दिया। हसन खाँ ने राजपुरी के राजा को पराजित किया । उसकी भगिनी से विवाह किया। दिनार कोट की सेनाओं ने हथियार रख दिया। मद्र, गक्खड़ तथा चिव देश के राजागण उसके आश्रम में आगये । हसन खाँ कुटी पाटीश्वर पहुंचा । भोग पालो का नगर जला दिया । बालेश्वर गिरि के पाद मूल मे हसन खाँ की सेना पहुंच गयी। हसन खाँ काश्मीर से ६ मास बाहर रहकर, विजय करता रहा।
बहराम खां ने देखा। राजा व्यसनी हो गया है । मन्त्रियों एवं सामन्तों को आक्रान्त कर, निरंकुश काश्मीर मण्डल में भ्रमण करने लगा।