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जैनराजतरंगिणी
'समुदय से शीभित सप्तधातु या अंग से युक्त शक्ति समृद्धि, सुभग, (राज्य या शरीर) यद्यपि सर्व कार्य में सक्षम रहता है, किन्तु जहाँपर वातादि दोष सदृश परस्पर द्वेषी मन्त्री होते है, वह राज्य, शरीर के समान शीघ्र गल जाता है (२:२९६) सप्ताग सुभग यह राज्य मेरा है, यह जिसने कहा था, अन्तस्थिति मे उसका अपना शरीर भी उसका नहीं हुआ। (३:५६२) उसकी उद्वेजित कन्या सदृश, सप्ताग सहित राज्य सम्पत्ति , रिपु के पराभव करने के लिये ही मानों, उसके घर चली आयी थी।' (४:१४) महात्मा गान्धी ने राम राज्य की कल्पना की थी। श्रीवर ने जैनुल आबदीन के राज्य की तुलना रामराज से की है । (१:१।१९)
प्राचीन काल के समान काश्मीर सुल्तानों के समय भी दूत भेजने की परम्परा थी। मुख्यतः युद्ध रोकने अथवा सन्धि करने या समझाने के लिये दूत भेजे जाते थे। दूतों का वर्णन जोनराज ने किया है। काश्मीर में प्राय: ब्राह्मण ही दूत कार्य करते थे। (जोन : ४७०) यदि दूत विरोधी पक्ष द्वारा बन्दी बना लिया जाता अथवा उसे शारीरिक कष्ट दिया जाता था, तो यह राज्य के प्रति तथा राजा के प्रति किया गया अपमान माना जाता था। इसी प्रश्न को लेकर युद्ध भी हो जाता था। सुल्तान कुतुबुद्दीन के दूत के साथ बुरा व्यवहार किया गया, तो सुल्तान क्रोधित होकर अपराधियों को दण्ड देने पर तत्पर हो गया। (जोन : ४७१) जैनुल आबदीन के दूत के साथ, उसके पुत्र हाजी खा के सेनानायको ने दुर्व्यवहार किया तो, हाजी खां स्वयं लज्जित हो गया। (१.१:१२७-१२८) जैनुल आबदीन ने ब्राह्मण दूत की दुरवस्था देखी, तो युद्ध के लिये तुरन्त सत्रद्ध हो गया। (१:१:१४१) अन्य सुल्तानों के समय भी दूत सन्देह वाहक रूप सन्धि प्रस्ताव लेकर जाते थे। मान्यता थी। दूत के साथ सज्जनता का व्यवहार और उसका पद गौरव राष्ट्र के प्रतिनिधित्व रूप माना जाय । सुल्तान जैनुल आबदीन अपने विद्रोही पुत्र आदम खा के पास भी राजदूत भेजा था । (१,३.७८)
हसन शाह सुल्तान होने पर अपने बाल काल के सेवक मल्लिक ताज भट्ट को दूत का अधिकार दिया । ताज भट्ट समग्र राज्य मे विग्रह एवं निग्रह विषयों मे राजा की जिह्व सदृश हो गया था । (३:२७, २८)
देश के बाहर दूत भेजने तथा रखने की प्रथा थी। श्रीवर एक ऐसे दूत का वर्णन करता है, जो राज्य में ही रहता था। श्रीवर ने उसे राजा की जिह्वा लिखा है । इससे प्रकट होता है कि सुल्तानों के समय इस प्रकार के दूत की भी नियुक्ति होती थी, जो राजा का विश्वास पात्र होता था। राजा के अन्तःकरण की बातें जानता था। उसका वचन राजा का वचन समझा जाता था। वह दूत के समान राजा का प्रतिनिधि देश में होता था। उसे फारसी इतिहासकार 'वकील' भी कहते है।
देश भक्ति :
श्रीवर देश भक्त था। काश्मीर की बोधात्मा का कल्हण ने दर्शन किया था। उसने सगौरव काश्मीर का वर्णन किया है। काश्मीर उसके लिये जन्म भूमि के साथ पण्य भूमि थी। उसे अपने धर्म, संस्कृति एवं परम्परा का अभिमान था। दिग्विजयो के वर्णन प्रसंग में उसकी देश भक्ति मुखरित हो उठती है। काश्मीर के लिये उसकी श्रद्धा एवं भक्ति पूर्ण गरिमा के साथ प्रकट होती है ।
जोनराज में देश भक्ति की उतनी भावना नही पाते, जितना कल्हण की राजतरंगिणी में मिलता है। उसकी देश भक्ति तत्कालीन परिस्थितियों के कारण दबी थी।
श्रीवर में देश भक्ति मुखरित हो उठी है। काश्मीर में काश्मीरी और विदेशी सैयिदो के दो दल हो गये थे । श्रीवर काश्मीरियों की खुल कर प्रशंसा करता है। काश्मीर के लिये त्याग की भावना लोगों में