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जैनराजतरंगिणी
गया । खान तीसरी बार काश्मीर मण्डल में प्रवेश और बाहर निकल कर पर्णोत्स ( पूछ ) पहुँचा । मार्गेश चिन्तित हो गया । उसकी मन स्थिति का श्रीवर वर्णन करता है - 'समय अधर्म बहुल हो गया है। सभी लोग द्रोह परायण है । राजा बालक है । मन्त्रि मण्डल स्वेच्छाचारी है। अपने लोग नियन्त्रणहीन है । खान पक्ष मे जाने के लिए उत्सुक है। पुरवासी अनुराग एवं राजगृह कोश रहित है, सर्व सामर्थ्यं रहित सत्ता मुझ वृद्ध के लिए नहीं रह गई है।' शस्त्राघात से चिन्तित मार्गेश अपने घर मे दो मास तक पड़ा रहा ।' (४:६०८-६१०)
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खान का चौथी बार काश्मीर प्रवेश : खान घटिका सार पर्वत से काश्मीर गये सैनिकों के साथ चौथी बार राज्य प्राप्ति की इच्छा से लोट आया। मार्ग के गाँवों मे आग लगा दी गयी। यह स्थिति देखकर, खान पुनः सेना लेकर युद्ध के लिए निकला । (४६१४ ) थोडी सेना होने पर भी काश्मीरी सेना को खान ने परास्त कर दिया । ( ४:६१९ ) देश में अराजकता फैल गई। खसो और डाकुओं ने जनपदों को लूटा। उनके भय से गंगी स्त्रियों एवं पुरुष घर वार छोड़कर भाग गये । श्रीवर लिखता है - 'गरजते हुए दुष्ट खश डाकुओं ने जनपदो को लूट लिया । उनके भय से सब कुछ त्याग कर नरनारी नग्न ही चली गईं। मार्ग मे भी पूर्वापकार स्मरण कर बहुत से बली लोगो की अबलाओं को मार डाला । वह राज विपर्यय कल्पान्त काल के सदृश अति नयकारी था । ( ४.६३३) नगर मे धनियों के उस दुःसह सर्वस्व लुण्ठन के समय, दरिद्र अतिधनी एवं अतिधनी दारिद्र्य के भागी हो गये । (४६३४) पत्र, पुष्प, एवं फल से सुन्दर वृक्ष एवं तरल तरगों से युक्त नदियाँ, शब्द युक्त पिक आदि जो होते है, वे हिम ऋतु मे क्रमशः शीर्ण, शुष्क एवं मूक हो जाते है— काल विपर्यय से क्या नहीं होता ? (४:६३५) उस राजा के बल सहित नष्ट हो जाने पर वे राज वल्लभ जन, वे सुन्दर स्त्रिय वे सेवक, कथावशेष हो गये ।' (४.६३६)
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राजविपर्यय के समय उस नगर में खसों ने दाह के अतिरिक्त सैयिदोपद्रव में होने वाले वध की अपेक्षा अधिक लूट की। ( ४:६४१) कुछ प्रधान वणिक, जो करोडों के संग्रह से वंचित हो गये थे, वे तृण मात्र से अंगों को ढककर, प्राणों की रक्षा कर, स्थिर रहे । ( ४:६४२) 'यदि जीत होगी, तो तुम लोगो को तीन दिन प्रलोभन देने पर, मन्त्री लोग सापेक्ष हो गये । उसी प्रकार काश्मीर में विदेशियों ने किया।
तक लूट की छूट दूँगा, इस प्रकार विदेशियों द्वारा उत्कोच ( ४:६४३) जिस प्रकार काश्मीरी बाहर जाकर लूट किये थे, समय पर क्या-क्या देखा नही जाता ? ' ( ४ : ६४४)
रक्षित किया था, उसे भी ले लिया चारों ओर फैलाकर मैं छुट गया
कुछ लोगों ने धन सहित कुम्भो को जो पक्षियों के तालाबों में ( ४:६४८) कुछ लोगों ने टूटे-फूटे भाण्ड एवं करण्ड आदि को घर में हूँ।' इस व्याज से खसों को भी ठग लिया । ( ४:६५०) नगर में धनिकों द्वारा गर्त में हर कदम पर रखे गये, धनों से उस समय वसुन्धरा वास्तव में (वसुन्धरा) धन को धारण करने वाली हो गई थी। ( ४:६५२) राजविपर्यय पर श्रीवर अपना मत व्यक्त करता है— 'वह राजविपर्यय सार्वजनिक कोश रूप, सर्प को दूर करने के लिए डिण्डिम, (नगाड़ा- डुग्गी), द्वेषी प्राचीन सेवक रूप कमल बन के लिए हेमन्त काल का उदय, भूपति के पृथ्वी रूप मधु गोलक (छत्ता) पर स्थित मधुमक्खी समूह के लिए घूमोद्गम तथा नृप सभा रूप उद्यान द्रुमावली के लिए वसन्त ऋतु था । ( ४:६५४)
पुष्प लीला : जैनुल आबदीन चैत्र मास में पुष्पलीला उत्सव हेतु पुत्रसहित नौफारूड, महवराज्य गया। (१.४:४२ ) राजा