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जैनराजतरंगिणी
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मार। गया था। फतह खा नाना के घर पला था। तातार खां उसका रक्षक था। फतह खां कुछ दिनों तक जालन्धर में निवास किया था।
सैयिदो के भय से बहिर्गत मार्गेश जहाँगीर ने पितामह का राज्य प्राप्त करने के लिये फतह खा को पत्र लिखा । तातार खा की मृत्यु पश्चात् उसके पुत्र हस्सन खां ने फतेह खा का पालन पोषण किया था । फतह खां राज्य प्राप्ति हेतु काश्मीर मण्डल की ओर प्रस्थान किया। शृगार उसे राजपुरी लाया । राजपुरी का राजा मार्गश इब्राहीम से द्वेष रखता था। फतह खां को आश्रय दिया। राजाजनक, ठक्कुर दौलत आदि डामर फतह खां से मिल गये । मसोद राजानक ने भी खान का पक्ष ग्रहण किया । (४:४०९-४१४)
काश्मीर के अवाछनीय तत्त्व, अपराधी, ऋणी जो भृत्य के समान सेवक बना लिये गये थे, चोर विट एवं दरिद्र खान के आगमन से प्रसन्न हो गये। उन्हे लूट-मार करने का सुन्दर अवसर दिखायी पड़ने लगा । (४:४१६) राज्य वैभव एवं राजकीय पदलोलुप खान की सेवा में उपस्थित हो गये । (४:४१७)
काश्मीर मण्डल का राजा शिशु था। सत्ता मार्गेश तथा मन्त्रियों मे थी। लोभी चारों ओर से खान के पास अन्य आश्रय त्याग कर आने लगे । (४:४१९) खान बढ़ने लगा। उसकी वार्ता सुनकर, लोग कम्पित हो उठे । खान के पूर्व मार्गपति के पास खान के मन्त्रियों ने पत्र भेजा-'आपके लेखो द्वारा तुरुष्क देश से इस खान को काश्मीर तुम्हीं लाये हो। हे ! मार्गपति ! आप कुलस्वामी भी कैसे उपेक्षा कर रहे है ? स्वयं किया हुआ पाप पश्चात्ताप के लिए कैसे हो गया ? शिशु के ऊपर राज्य भार डाल कर, दूसरे लोग मण्डल का उपभोग कर रहे है । व्यवहारोचित एवं शुद्ध, यह क्यो बाहर रहे ? अथवा यदि मण्डल मे उसका पितृभाग दे देते हो, तो वह काश्मीर के बाहर ही स्थित रहकर और भीतर यह राजा बना रहे । यदि यह शर्ते स्वीकार नही है, तो युद्ध मे दोनों सेनाओं के बध का दोष आप पर होगा।' (४:४२७-४३०)
मागेंश ने उत्तर भेजा-काश्मीर भूमि पार्वती है, वहाँ का राजा शिवांशज है। कल्याणेछुचक विद्वानों को दुष्ट होने पर भी, उसकी उपेक्षा या अपमान नहीं करना चाहिए। इस देश में तपस्या द्वारा राज्य प्राप्त होता है, न कि पराक्रमों से अन्यथा आदम खाँ आदि लोगों ने अपने क्रमागत राज्य को क्यों नही पाया? जिस क्रम से वह आया, उसे त्यागकर राजा के रहते विघ्न हेतु उसे प्रवेश कैसे दिया जाय ? यदि यह खान मेरा मत मानता है, तो सर्वथा पूजनीय है । अरुण को अग्रसर कर, उदयोन्मुख सूर्य पूजित होता है । कृतघ्न भाव प्राप्त, सम्पत्तियाँ, चिर काल तक मनुष्यो के सुख के लिए नही होती, अवश्य व्यसन युक्त भोग शरीर के रोग के लिए ही होते है। मैंने उसे राजा नही बनाया है। दूसरों ने उसे राजा बनाया है । मैं उसकी रक्षा कर रहा हूँ। क्या राजा को सैयिदों के हाथों से मुक्तकर, अब आप लोगों के हाथों सौप दूँ ? (४:४३३-४४०)
खान का प्रथम बार काश्मीर प्रवेश खान की सेना ने काश्मीर में प्रवेश किया। साथ ही डोम्ब, तथा खसादि लूट-मार पर तत्पर हो गये । मार्गों पर पथिक, चोरों द्वारा लूट लिये जाते थे। निर्बलों पर बलवान हावी हो गये थे। नृप रहित देश तुल्य, अराजकता फैल गई। जनता अरक्षित थी। रक्षा हेतु निवास त्यागकर, पशुधन आदि सहित दक्षिण चली गई। (४:४४०-४६)
खान की सेना खेरी तथा अर्धवन राष्ट्रों में प्रवेश की। खान की तात्कालिक विजय हुई। भागसिंह खान का सलाहकार था। उसके कारण बिना अवरोध खान काश्मीर पहुँच गया। मल्ल शिला पर शिविर लगाया। सैनिकों ने कराल देश के निरालम्ब निवासियों को लूट लिया।