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जैनराजतरंगिणी और यहाँ शिशु राज का कोश लूट लिया गया है। राज द्वार पर केवल एक लोहे की घंटिका मात्र शेष रह गयी है।' (४:१५५, १५६) ।
सन्धि के लिए सैयिदों को शर्त भेजा गया। दूतने कहा-'शिशु सुल्तान का जो धन अपहरण किया गया है। वह कोश मे रख दे, शस्त्र त्याग दे, पश्चात् सन्धि की मन्त्रणा की जाय।' (४:१५९) सैयिदों ने काश्मीरियों के सन्धि शर्त को नही माना। (४:१६२) सैयिद कौरवों के समान, पाण्डव काश्मीरियों से, युद्ध करने के लिए सन्नद्ध हो गये । (४.१६४) काश्मीरी सेना सैयिदों से युद्धार्थ श्रीनर पहुँची। (४:१६५) डोम्ब आदि इस स्थिति से लाभ उठाये। रण त्यागकर, लूट पाट करने लगे। (४:१६९) सैयिदों को विजय सन्देहास्पद हो गयी। तथापि वे युद्ध हेतु सम्मुख आये। (४:१७२, १७३) घोर युद्ध आरम्भ हुआ। युद्ध दर्शक पुरवासी भी मारे गये। (४:१८२) सैयिदों ने ब्राह्मणों के घर स्थित परदेशियों को भी, यह कर मार डाला कि वे मद्र निवासी थे। (४:१८३) सैयिदों ने वैद्य पण्डित यवनेश्वर को, जो घर मे बैठा था, अकारण मार दिया। (४:१८५) लोगों को भयभीत करने के लिए उसका मस्तक राजपथ पर रख दिया गया । (४:१८७) मलिकपुर से लोष्ट विहार तक मृत शव इन्धन की लकड़ी की तरह पड़े थे। (४:१८९) । सैयिदों को इस युद्ध मे तात्कालिक विजय मिल गयी। सैयिदों ने वामप्रस्थ मे बाजा बजाकर, विजयोत्सव मनाया । (४:१९१)
सैयिदों ने गलती की। काश्मीरियों का पीछा नहीं किया। काश्मीरी पुनः संघटित हो गये। दोनों सेनाओं का सामना हुआ । वितस्ता पुल टूट गया। दोनों पक्षों के अनेक सैनिक ड्ब मरे । (४.१९५) नागरिक युद्ध देखने आये। सैयिदों ने उनके सम्मुख छिन्न मुण्डराशि रख दी। (४:१९७) लट्ठों पर मुण्ड भयभीत करने के लिए लगा दिये गये । (४:१९८)
काश्मीरी हतोत्साहित नहीं हुए। पुनः चारों ओर से एकत्रित हो गये। समस्त काश्मीर मण्डल में सै यिदों के विरुद्ध लड़ने के लिए आह्वान किया गया । धनघोर युद्ध हुआ। वितस्ता में स्त्रियाँ जल भरने गयी थी। बाणों से उनका अंग विदीर्ण हो गया। वे वही मर गयी।
काष्टवाट के दौलत सिंह, मल्हड़ हस, शाहि भंग के राजपुत्र, सिन्धुपति वंशीय, पथगह्वर के वीर, खश, म्लेच्छ एवं अन्य लोग भी आकर, घेरा डाल दिये । काश्मीरी विजय प्राप्त नहीं कर सके।
सैयिदो के आह्वानन पर तातार खां ने तुरुष्क की सेना सहायतार्थ भेजी। (४:२१६) किन्तु काश्मीरियो ने युद्ध की नवीन योजना बनायी। काश्मीरी गुरेला नीति का वरण किये । सैयिदों पर छापा मारकर, अस्त्र, शस्त्रादि अपहृत करते थे। (४:२२७) दो मास तक संघर्ष चलता रहा। कोई भी दल शिथिल नही हुआ। (४:२३१) एक दूसरे के सैनिकों को पकड़कर, शूली आदि पर चढ़ाकर मारने लगे।
काश्मीरियों का घेरा दृढ़ होता गया। उन्होंने सैयिदो को सन्देश भेजा-'केवल नगर मे रहकर कितने दिन तक वे ठहरेंगे ? अन्न या सहायता नही मिलेगी।' सैयिदों ने उत्तर दिया--'अन्न की कमी से भूख की पीड़ा से, अथवा भय से, वहाँ से नही जायेगे । तुरुषकों को किस वस्तु से घृणा है ? हम लोग सर्व मांस भोजी है । जब तक पशु, गो मांस, पर्याप्त है, तब तक रहेंगे।
सैयिद बली थे। अतएव काश्मीरियों ने नीति से काम लिया। सेना को तीन भागों में विभक्त किया । मद्र सैनिकों ने विजय या वीर गति प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। (४:२५०)
काश्मीरियों ने स्व पक्ष सैनिकों के पहचान के लिए उनके शिर पर पत्र शाखा रख दिया। दोनों ओर से काश्मीरी सैनिक होने के कारण पता नही चलता था। कौन किस पक्ष का सैनिक था। (४:२५४)