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भूमिका
कर, शेप का भी काम तमाम कर दिया जाय । ( ४:६३-६४ ) सुल्तान सैयिदों का पक्ष करता है, रानी सैयिद कन्या होने के कारण सैयिदो का पक्ष करती है, अतएव काश्मीरियों ने बहराम खां के पुत्र को बन्धन मुक्त कर दिया । यिद शंकित हो गये । किन्तु बहराम खा के पुत्र की अकारण हत्या कर दी गयी । ( ४.७८) काश्मीर जनता उनके इस लोमहर्षण पूर्ण हत्या से क्रुद्ध हो गयी लूट-पाट होने लगी सुभग एवं सुन्दर वेश युक्त होकर, राज गृह मे जो लोग प्रवेश किये थे, जिनके घोड़ों की टापों से उठी धूलो से भूमि अन्धकारमय हो गयी थी, वे लोग ही, दो तीन शिविकाओं मे जीर्ण वस्त्र युक्त, गिरते रक्त धारा सहित नृप गृह से निकले। (४.९१)
सैविदों ने वितस्ता नदी पर मोर्चेबन्दी की जलाल ठाकुर आदि काश्मीरियों ने मौका सेतु बन्ध काट दिया। काश्मीरी मद्रों से समझौता कर लिये। ( ४:९६) संविदों ने विप्रस्य में शिविर लगाया । ( ४.९७ ) यिदों की सत्ता काश्मीर मण्डल से समाप्त हो गयी थी। केवल श्रीनगर उनके अधिकार में था । ( ४:९९ ) सैविदों ने धनबल पर सेना संघठित करना चाहा, जिन्हें कभी एक कौड़ी भी नहीं मिली थी। वे स्वर्ण एवं रुपया हाथ में लिये घूमने लगे कारीगर और गाडीवानों ने भी संविदों से धन लेकर शस्त्र ग्रहण कर लिया। ( ४.९९-१००) राजकीय अश्वो पर सैविदों के नौकर, सड़कों पर घूमने लगे। (४:११)
काश्मीरी सामन्त पारस्परिक विरोध भूल कर संयिदों से राज सत्ता प्राप्त करने के लिए, एक सूत्र बद्ध हो गये । जाल डागर मे काश्मीरी सेभा एकत्रित हुई। नगर मे मद्र लोगों ने अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली । यह समाचार फैलते हो चारों ओर से आकर सशस्त्र काश्मीरी संघठित हो गये धन नहीं था । कोशाभाव में, वे धान्य संभार, नाविकों द्वारा मंगाकर वेतन देने लगे । ( ४:११० )
। काश्मीरियों के पास
काश्मीरी और संविदों की सेनाएं वितस्ता के आर पार शिविर लगाये थी। प्रतिदिन संघर्ष होता था । ( ४.११२) इस उपद्रव काल में अवांछनीय तत्त्व उभड़ आये । लूट पाट एवं जनता को पीड़ित करने लगे । (४:११०) सैयिदों ने रक्षार्थ पाँच हाथ चौड़ी खाई खुदवाई | ( ४ : १२२) रुद्र राजानक के निकट एक दूसरी खाई खोदी गयी। नगर मे लकड़ी का अभाव होने पर, दिद्दामठ एवं रुद्र वन के गृहों से लकडियाँ ले ली गयी । राज्य प्रासाद प्रांगण अश्वारोही स्वच्छन्दता पूर्वक नित्य घूमते थे ।
में
संघर्ष के साथ ही साथ घरों मे आग लगाने का भी कार्यक्रम राजानक हसन ने आरम्भ किया । ( ४ : १२२) उस समय पारस्परिक भय से, नष्ट धैर्य सैयिदों एवं काश्मीरियों की सैन्य स्थिति काकतालीय न्याय जैसी हो गयी थी । ( ४:१२९) लोगों के मस्तक काटकर लाठी पर टांग दिये जाते थे । ( ४:१३० ) पद्मपुर आदि स्थानों में लूट मार होने लगी । विप्लव को अग्नि ग्रामों तक पहुँच गयी । एक पक्ष दूसरे के गृहों में आग लगा देता था। लहर आदि स्थान अग्निदाह मे भस्म हो गये। ( ४:१३५) काश्मीरियों ने जहाँगीर मार्गेश को सन्देश भेजा— 'विजय के लिए इच्छुक हम सब काश्मीर मण्डल मे फँसे है, और पुर मात्र में अवशिष्ट वे सैयिद घिरे है । (४.१३९) वहाँ शीघ्र आकर, राज्य की रक्षा करनी चाहिए । अन्यथा सेविद पुत्र शिशु सुल्तान का राज्य नहीं स्थापित करेगा । ( ४:१४३)
जहाँगीर मार्गेश अविलम्ब पर्णोत्स ( पूछ) मार्ग से सदल बल काश्मीर के लिए ही प्रस्थान किया । ( ४:१४४) उसके आगमन का समाचार सुनते ही सेविद काँप उठे ( ४:१४५) सेवियों ने सन्धि का प्रस्ताव रखा । ( ४:१४६) फारसी लिपि में मार्गेश ने उत्तर दिया- ' बहराम खाँ आत्मज ( युसुफ ) राजपुत्र को किस लिये मारा गया ? ( ४:१५४) नुरुल्ला आदि के वध के कारण, यहाँ किसको आप लोगों पर विश्वास होगा ?