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जैनराजतरंगिणी
करेगा। अच्छा है। आदम खाँ के सन्तान (फतह खाँ) को लाकर अभिषिक्त करो। (३:५४०-५४१) अथवा आपकी यह कन्या, (राजमहिषी) जो कहे, वह करो' (३:५४२) सैयिदों ने सुल्तान की इच्छा के विपरीत कार्य किया। आदम खां का पुत्र सैयिद वंशीय कन्या से नही था । अतएव सैयिदो ने सुल्तान की मृत्यु के पश्चात् उसके और अपनी कन्या के पुत्र मुहम्मद खाँ को जिसकी उम्र केवल सात वर्ष थी, सुल्तान बनाकर, राजतन्त्र पर पूरा अधिकार कर लिया।
सैयिद विप्लव तथा खान विप्लव : श्रीवर दो विप्लवों का वर्णन करता है-खान विप्लव तथा सैयिद विप्लव । सैयिदों का विप्लव खान विप्लव की अपेक्षा अधिक भयंकर था । सैयिदो का विप्लव लौकिक वर्ष ४५६० = सन् १४८४ ई०, वैशाख मास चतुर्दशी को हुआ था। सैयिदों ने काश्मीर पर अधिकार करने का प्रयास किया। वे सभी राजकीय स्थानों पर नियन्त्रण चाहते थे। काश्मीरी कुलीन तथा सामन्त वर्ग को यह बात खलने लगी। सैयिद एवं काश्मीरियों में संघर्ष छिड़ गया। एक दूसरे को मिटाने के लिए कटिबद्ध हो गये। सैयिदों को राजप्रासादीय समर्थन प्राप्त था। परन्तु केवल प्रासादीय समर्थन द्वारा सैयिद स्थिति सुदृढ करने में सफल नहीं हो सके । काश्मीरी जनता उनके कुव्यवहारो, गर्व एवं शोषण से ऊब गई थी। बहराम खाँ के चौबीस वर्षीय पुत्र युसुफ की अनायास हत्या कर दी गई । जनता क्षुब्ध हो गई। जनता की सहानुभूति सैयिदों ने खो दी।
सैयिदो ने सुल्तान पर कड़ा नियन्त्रण रखा था। बिना अनुमति अन्तः पुर में प्रवेश वजित था। (४:१५) सैयिद काश्मीरी विद्वान् एवं शास्त्रज्ञों की निन्दा करते थे। घर मे वे कामिनियों से घिरे रहते थे। ऐश करते थे। बाहर वाज पक्षी से शिकार खेलते थे । (४:१६) दोषपूर्ण व्यवहार, वलि, क्रूराचारी, अभिमानी, लोभ के कारण दुरूह, यमदूत तुल्य कष्टदायक, दुःशीलता के कारण अधिकार अनभिगम्य, मात्सर्य युक्त, उन सैयिदों से प्रजासहित सब सेवक विरक्त हो गये । (४:१७) सैयिद काश्मीरियों को द्वेष दृष्टि से देखते थे। उनका अनादर करते थे। (४:२२) काश्मीरियो की जो भी पुरानी एवं प्रचलित मान्यतायें थीं, उनके विरोधी थे।
सैयिदों ने काश्मीरियों के विरुद्ध मन्त्रणा आरम्भ की। काश्मीरियो के विरुद्ध योजना बनने लगी। काश्मीरी सतर्क हो गये । मद्र निवासी काश्मीर मे बडी संख्या में थे। वे भी शंकित हो गये । काश्मीरी और कद्र मिल गये । (४:२४) उनका मोर्चा सैयिदों के विरुद्ध बन गया। मद्रो ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। सैयिदों के विरुद्ध विद्रोह के लिये कृतसंकल्प हो गये। (४:२५) ।
षड्यन्त्र का पता रानी को लगा । सैयिदों को सतर्क किया । उद्धत सैयिदों ने बात अनसुनी कर दी। (४.२८-३०) काश्मीरी जोन राजानक आदि ने मद्रों को भड़का दिया। मद्र उत्तेजित हो गये। सैयिदो का बध करने का निश्चय किये । अमृतवाडी में सैयिद एकत्रित थे।
मद्र नेता परशुराम ने वहाँ प्रवेश किया। चतुःखण्ड मण्डप पर स्थित, सैयिद आगत मद्रों को देखकर शंकित हो गये। (४:४०) सैयिदों का पक्षपाती सिंह भट्ट था। परशुराम ने सर्वप्रथम उसका बध कर दिया (४:४३)। सैयिद जब तक सावधान होते, मद्रों ने हमला कर उनका सफाया कर दिया । (४:४६) तीस सैयिद मार डाले गये। (४.४८) घर में जिस प्रकार गौ का बध करने से पाप का भय (सैयिदों) को नही हुआ था, उसी प्रकार सैयिदों के बध से मद्रों को घृणा नहीं हुई। (४:५०) उनकी लाशें नग्न अनाथ तुल्य पड़ी रही। राज प्रासाद के फाटक में आग लग गयी। मद्र सहित, विद्रोही दल, राजा के घोड़ों पर चढ़कर, मुक्तामूलक नाग के समीप पहुँच गया। वहां परस्पर मन्त्रणा हुई। निश्चय हुआ। सैयिदों से युद्ध