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जैन राजतरंगिणी
दो है । उसकी काल गणना ठीक है। उसने जिस संवत् वर्ष का उल्लेख घटनाओं के सन्दर्भ में किया है, वे अन्य स्रोतों से भी प्रमाणित होते हैं। सन् १४७० ई० के पश्चात् उसने लो० ४५४८ = सन् १४७२ ई० (२:२० १) लौ० ४५५० = सन् १४०४ ६० (३:१७१), लौ० ४५५४- सन् १४७८६० (३:२२६), डी० ४५५५ - सन् १४७९ ई० (३:२७५), कौ०४५६० सन् १४८४ ई० (३:५५४, ४:९२) लो० ४५६१सन् १४८५ ई० (४:४९९), तथा लौ० ४५६२ - सन् १४८६ ई० (४.५७६, ५८०,६३७) दिया है। उसकी काल गणना ठीक मिलती है।
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अन्नसत्र :
प्राचीन हिन्दू राजाओं की अनेक प्रचाएँ सुल्तानों ने जारी रखी जैनुल आबदीन ने त्रिपुरेश्वर (१:५:१५), वाराह क्षेत्र (१:५:१६), पद्मपुर (१:५:२० ) विजयेश्वर (१.५:२१) शूरपूर (१:५:२२), सतीपुष्प (२:१८६) जैन वाटिका (१३५४६) में मनुष्यों तथा वितस्ता सिन्धु संगम पर मछलियों के लिए अनसन खोला था । धीवर लिखता है— वितस्ता सिन्धु संगम पर अम्नसत्र से नित्य तृप्त मत्स्यों से छोटी मछलियों को अभयदान मिल गया । ' (१ : ५:१७) बड़ी मछछियों का पेट इतना भर जाता था कि वे छोटी मछलियों को नहीं खाती थीं।
हशन शाह के समय फिर्य डामर ने मसजिद में अन्न सत्र स्थापित किया था - 'उस फिर्य डामर ने जैन नगर में सुन्दर सत्र वाला मसोद ( मसजिद) और हुजिरा ( हुजरा) से सुन्दर खानकाह निर्मित करावा ।' ( ३.१९७) मुसलिम विद्यार्थियों के लिए खानकाह मे भोजन का प्रबन्ध होता था । मसजिदों मे अन्न सत्र की व्यवस्था थी ।
अभिषेक
सुल्तान सिंहासनासीन होने पर, अभिषेक नाम रखते थे। शाही खां का अभिषेक नाम जैनुल आबदीन, हाजी खां का हैदर शाह, मुहम्मद खां का मुहम्मद शाह था । हिन्दुओं में भी अभिषेक नाम रखा जाता था । श्रीवर ने जेनुल आबदीन के अन्तिम चरणों का इतिहास लिखा है किन्तु अन्य तीनो सुलतानों हैदर शाह, हसन शाह एवं मुहम्मद शाह के अभिषेक का वर्णन किया है । उनसे तत्कालीन अभिषेक प्रथा पर प्रकाश पड़ता है ।
राज्याभिषेक के दिन नगर में दीपमालिका होती थी। नगर सजाया जाता था । उत्सव होता था । (२:४) राजधानी अर्थात् राजप्रासाद प्रांगण मे स्वर्ण सिंहासन अथवा रजत आसन रखा जाता था । जैनुल आबदीन का सिंहासन त्रिकोणीय था । ( १:५ : १०) सुल्तान सिंहासन पर बैठता था । अनुज एवं आत्मज तथा अन्य सम्बन्धी उसके पाश्वं मे रहते थे राज्याधिकारी शुभ्र वस्त्र पहनते थे ।
काश्मीर के सुल्तानों का अभिषेक हिन्दू एवं मुसलिम दोनों पद्धतियों से होता था । इस अवसर पर होम किया जाता था । दान दिया जाता था । सिंहासनस्थ सुल्तान का तिलक होता था । हैदर शाह का तिलक हस्सन केशिश ने किया था मुसलिम के पश्चात् हिन्दू रीति से अभिषेक किया जाता था। हिन्दू रीति के अनुसार उस पर छत्र एवं चमर लगता था । सिकन्दर बुत शिकन के पूर्व सुल्तान मुकुट धारण करते थे, तत्पश्चात् मुकुट का स्थान ताज ने ले लिया । अन्य उच्च पदस्थ तथा प्रियगण भी राजा का तिलक करते थे। (२:२०६)
इस अवसर पर सम्बन्धियों को जागीर दी जाती थी। हैदर शाह ने अपने कनिष्ठ भ्राता बहराम खां