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जैनराजतरंगिणी
सुन्दर शृङ्गार परिपूर्ण वे भूमि पर नग्नावस्था में काक, कुक्कुट, वकों के भोजन बनते, खाये गये । मेदा, मांस, मसा से निकलते कृमियो सहित तथा दुर्गन्ध युक्त देखे गये । (४:१९०)
मलिकपुर से लोष्ट बिहार तक सड़क पर इन्धन समूह के समान शव रखे हुए थे। इसी प्रकार के पुनः एक दृश्य का धीवर वर्णन करता है-समुद्र मठ से लेकर, पूर्वाधिष्ठान तक, मार्गों में इन्धन के गट्ठर के समान निर्वस्त्र शव पड़े हुए थे। (४:२८८) अधिकारियों का वध बिना न्याय किये ही कर दिया जाता था । उनके शवों के साथ क्रूरता की जाती थी।
'राजप्रासाद के प्रांगण से, चाण्डालों ने गुल्फों मे रस्सी बांधकर उन्हे (ताज एवं याजक) को खींचा, उनके शरीर के अंग मल युक्त हो गये थे । वे कुत्तों के भोजन बने ।' (४:६९) सैनिकों के पराजित होने पर, उनका मस्तक काटकर, उन्हे डण्डो पर टाँग दिया जाता था-'साहसी वीर तैरकर शीघ्र नदी पार चले गये, फिर छेदन कर, तत् तत् लोगों को मार कर, वितस्ता तट पर ही, उन्हे दण्ड पर आरोपित कर दिये।' (४:१३०)
सबसे दयनीय दशा बहराम के पुत्र युसुफ की हुई। वह निरपराध था । बन्दी था। तीन वर्ष बन्दी जीवन के पश्चात् उसके पिता बहराम की मृत्यु हो गयी। पिता की मृत्यु पश्चात् भी बन्दी बना रहा। इसी बीच राज्य मे दो विरोधी दल हो गये। एक दल राजानक आदि ने बहराम के पुत्र युसुफ को परनाले के मार्ग से बन्दीगृह से मुक्त किया । (४:७६) सामने शत्रु सेना थी। युसुफ दुर्बल था। आगे-पीछे कहीं जाने मे समर्थ हीन था। अलीखां ने सन्देह किया। विरोधी दल राजनीतिक लाभ उठाने की दृष्टि से युसुफ को मुक्त किया था। अलीखां ने राजपुत्र युसुफ को आश्वासन दिया। सुरक्षित रहेगा। किन्तु अलीखा ने श्रीवर के शब्दों में उसे इस प्रकार मारा जैसे हरिण को सिंह मारता है। (४.७८) क्षण मात्र के लिए नहीं विचार किया। युसुफ तीन वर्षों से ऊपर कारागार में था। उसने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं था। उसका एक मात्र दोष था। वह राजवंश मे उत्पन्न हुआ था। वह अपनी इच्छा से बन्दीगृह से मुक्त नहीं हुआ था। मुक्त होते ही उसकी हत्या कर दी गयी। अनाथ युवक चौबीस वर्षीय (४:८६) राजपुत्र युसुफ, समझ न सका, वह क्यों मुक्त किया गया और उसकी क्यों हत्या की जा रही थी। इस प्रकार की अनेक घटनाएँ प्रायः उन दिनों काश्मीर मे घटा करती थी। उनके लोग आदी हो गये थे। (४:७६-७८)
श्रीवर कितना मार्मिक वर्णन करता है-अच्छा है, मनुष्यों का जन्म सामान्य घर में हो, दुःखप्रद राजगृह मे न हो, सामान्य जन अरुचिकर एवं छोटे वस्त्र के एक भाग पर, शयन कर लेते है, किन्तु राजा (राजयुगल) सुन्दर एवं बड़े देश में भी नहीं समाते ।
प्रतिमा भंग :
सिकन्दर बुतशिकन के समय देश में प्रतिमाएँ भंग कर दी गयी थीं। कोई ग्राम नही था, जहां मूर्तियां नही तोड़ी गयीं, जहां जबर्दस्ती लोग मुसलिम धर्म में दीक्षित न किये गये। अलीशाह ने सिकन्दर बतशिकन के हिन्दूउत्पीड़न उत्पाटन एवं संहार नीति को जारी रखा । जैनुल आबदीन के शासन काल में हिन्दुओं को कुछ राहत मिली थी। मन्दिरों के जीर्णोद्धार का भी आदेश दिया था। बाहर से हिन्दू-बुलाकर, पुनः काश्मीर मे आबाद किये गये थे। परन्तु हैदर शाह का शासन होने पर, हिन्दुओं का उत्पीड़न, एवं दमन आरम्भ हो गया-'राजा (सुल्तान) ने द्विजों को पीडित करने का आदेश दिया। राजा ने अजर, अमर, बद्ध आदि सेवक ब्राह्मणों के भी हाथ, नाक कटवा दिये। उन दिनों भट्टों के लूटे जानेपर, जातीय वेश त्यागकर,