________________
भूमिका (२:४६६) उसने ठक्कुरादि जैनुल आबदीन के विश्वासपात्रों को आरों से चिरवा दिया। (२.४५) मार्ग से अनायास लोगों को पकडकर, पाँच छः व्यक्तियों को एक साथ सूली पर चढवा दिया। (७:४८) वैदूर्य भिषग को दूषक एवं परपक्षगामी जानकर हाथ, नाक और ओष्ट पल्लव कटवा लिया। (२:५०) शिख ज्यादा नोनक आदि सभ्रान्त पाँच छः व्यक्तियों की जीभ, नाक एवं हाथ कटवा दिया। लोग इतने आतंकित हो गये थे कि भय से स्वयं वितस्ता में डूबकर, भीम एवं जज्ज के समान प्राण विसर्जन कर देते थे । (२:५३) राजा स्वयं क्रूर हत्या के लिये प्रेरणा देता था। उसने हसन आदि की हत्या के लिये आदेश दिया-'उन्हें प्रातःकाल युक्ति पूर्वक लाकर वध कर देना चाहिए।' (२:७४) हसन जिसने राजा का तिलक किया था वह तथा मेर काक आदि पाँच छः व्यक्ति राजदरबार मे बहुमूल्य आस्तरण पर बैठे थे। राज्यादेश की प्रतीक्षा कर रहे थे। उसी समय राजा ने उनका अचानक वध करा दिया । (२:७८) विद्या व्यसनी, गुणी; अहमद, जब राजगृह में लिख रहा था, उसी समय अकस्मात् उसे मार डाला गया। (२:८१) राजप्रासाद प्रांगण में अहमद आदि उच्च पदाधिकारी एवं मन्त्रीगण मारे गये। उनका शव उनके कुटुम्बियो को नही दिया गया। श्रीवर लिखता है-'अनाथ सदश उन लोगो को चाण्डालों ने रात्रि मे वहाँ से ले जाकर, प्रद्युम्न गिरि (शारिका पर्वत) के पाद मूल मै भूगर्त (कब्र) मे निवेशित कर इट्टिका (ईंटों) से ढक दिये । (२:८८)
___ सुल्तान हैदर शाह कितना क्रूर था इसी से प्रकट होता है-'राजा राजप्रासाद पर आरूढ़ होकर, अपने पाँचगृहों को जलते हुए देखकर, सन्तुष्ट होकर, पान लीला करने लगा।' (२:१४२) यह रोम सम्राट नीरो की क्रूरता का स्मरण दिलाता है, जो जलते रोम को देखकर प्रसन्न होकर, गाने लगा था।
हसन शाह के समय क्रूरता और तीव्र हो गयी । हसन शाह ने जैनुल आबदीन के पुत्र बहराम खाँ की आँख फोड़ दी। बहराम खाँ को आँखों पर पहले रूई रक्खी गयी। तत्पश्चात् गर्म लोहे की शालिका, आँखों में धंसा दी गयी, उस समय, किसी दिन के राजसुख भोगने वाले, बहराम खाँ को जो पीड़ा हुई, उसका वर्णन श्रीवर करने में अपने को असमर्थ पाता है। (३:१०७-१०८) अभिमन्यु प्रतिहार की प्रेरणा पर हसन शाह ने बहराम खाँ का नेत्रोत्पाटन कराया था। कुछ ही समय पश्चात् अभिमन्यु प्रतिहार सुल्तान का कोपभाजन बन गया। बन्दी बना लिया गया। श्रीवर लिखता है-'बहराम के जैसी अति दुःसह व्यथा हुई थी, उसने भी नेत्रोत्पाटन द्वारा वैसी व्यथा का अनुभव किया। वह दूसरे द्वारा कही नही जा सकती।' (३:१३०-१३३)
सैयिदों के अत्याचार की कहानी अत्यन्त भयंकर है। वे मानवता एवं क्रूरता की सीमा पार कर गये थे-'वैद्य पण्डित यवनेश्वर को सैयिदों ने मारकर, उसके चन्दन लिप्तांग काटे मस्तक को, राजपथ पर रख दिया। (४:१८५-१८६) सैयिदों ने कटे शिरो राशि को वितस्ता तटपर, कोलों पर रखकर, उनके द्वारा जनता में भय उत्पन्न करने के लिये दीपधर सदृश काष्ट रख दिये।' (४ १९७-१९८)
__ शव वितस्ता में फेंक दिये जाते थे। वे फूल जाते थे। तैरते दुर्घन्ध करते थे । महापद्मासर (उलर लेक) में बहते, चले जाते थे । उनका अन्तिम संस्कार करने का भी कोई विचार नहीं करता था। (४:१९९) वितस्ता के दोनों तटों पर आने वाली स्त्रियों को, वाणों से बिद्धकर, अंग विदीर्ण कर देना, साधारण बात थी। (४:२०६) वितस्ता तटपर, रोक कर, प्रति दिन दो तीन व्यक्तियों को सूली पर चढा देते थे। सम्भ्रान्त, सामन्तों एवं सैनिक पदाधिकारियों के शव लावारिसों तुल्य सड़कों पर फेंक दिये जाते थे। श्रीवर करुण वर्णन करता है-'रूई की गही पर रखे, उपधान के स्पर्श का उत्तम सुख प्राप्त करने बाले,