________________
भूमिका
६१
श्रीवर मृगया द्वारा निर्दोष जीव हत्या का विरोधी था । वह धिक्कारता है - 'राजा के मृगयाव्यसन को धिक्कार है, जो कि फल नहीं भोगते, मुगों के व्याज से लोगों का ही स्पष्ट रूप से शिकार किया जाता है, (३:५१८ ) जहाँ पर पशुओं के समान सैकड़ों बार मृग समूहों को बाँध (घेर) कर मारा जाता है, वह मृगया विनोद हेतु है, तो वधिक कर्म और क्या है ? (३:५१९) अश्वारोहियों का यह श्रम सचल लक्ष्य पर तो स्मृहणीय है किन्तु धनुर्धारियों का बद्ध मृग पर क्या यह शराभ्यास प्रशंसनीय है ?' (३:५२० ) श्रीवर मृगया का विरोधी नहीं है परन्तु वह पशुओं को घेर कर मारने, उन्हें अपनी रक्षा का बिना अवसर दिये, हत्या करने का विरोधी है । इसीलिये उक्त श्लोक में 'सचल लक्ष्य' का उल्लेखकर, मृगया पर पुनः विचार प्रकट करता है—' क्षत्रियों को तृणभोजियों की आनन्दमयी मृगया करनी चाहिए, अत्यन्त व्यसन युक्त नहीं, अति सर्वत्र गहित होता है। ( ३:५२१) महापथसर तीर एवं गिरि के मृग समूहों को राजा ने आकर उसी तरह वध से निःशेष कर दिया, (३:५२२ ) इत्यादि कुछ अनुचित मृगया दोष किया, जिसे देखलर, भावी मृगया प्रेमियों को भय होना चाहिए। (६:५२३)
श्रीवर इस प्राणि हिंसा का परिणाम राजा की बीमारी तत्पश्चात्, उसकी मृत्यु का कारण लिखता है - 'आखेट करके, राजधानी पहुँचकर राजा का शरीर ग्रहणी ( संग्रहणी) रोग से अस्वस्थ हो गया । (३:५२४)' कुछ लोगों ने कहा - ' मृगया दोष से देवता कुपित हो गये, जिससे वहीं पर, उसे अतिसार रोग का आरम्भ हुआ ।' (३:५२५)
-
राजा बीमारी के पश्चात् भी मृगया से विरत नहीं हुआ । वह सर्वोत्सव के लिये जा रहा था । मार्ग में सर्प ने रास्ता काट दिया। उसने सर्प की हत्या बाणों से कर दी । वहाँ से शीघ्र ही भृत्य सहित नौकारूढ़ होकर, दिनभर उत्कण्ठा दूर करने के लिये, बाजों द्वारा पक्षियों का वध किया । (६:५३४) वाजों ने पक्षियों को पकड़कर, सुल्तान के सम्मुख ढेर लगा दिया । ( ३: ५३५ ) वहाँ से लौटकर, राजा ने उन सैंयिदों को छोड़ दिया और शय्या पर स्थित रहकर मैं स्वस्थ नहीं हूँ, इस प्रकार से अपना रोग रानी को ज्ञात करा दिया। ( ३:५३६) बीमारी से सुल्तान उठ न सका। उसकी दुःखान्त मृत्यु हो गयी । (३:५५४)
मुहम्मद शाह के शासन काल में बाजों से शिकार करना एक व्यसन हो गया था। ( ४:१६) परिणाम यह हुआ कि स्त्री एवं स्पेन लीला व्यसन में राज वर्ग लगकर काश्मीर की अवनति का मार्ग प्रशस्त किये । जीव हत्या श्रीवर बताता है। काश्मीरी और संकेत श्रीवर इस पशु एवं पक्षि हत्या को देता विनाशकारी संघर्ष किया विप्लव हुआ। उस
सैयिदों के नाश का कारण अनावश्यक शिकार द्वारा सैविदों का विचार तथा मन नहीं मिलता था। इसका भी है, जिसके कारण संयिदों एवं काश्मीरियों में दलबन्दी हुई। विप्लव में काश्मीरी विजयी हुए । सैयिदों का नाश हो गया। सैयिदों की जीव हिंसा के विषय में श्रीवर लिखता है - 'पहिले ही शकुनापेक्षी लोग, नवीन भूपाल ( मुहम्मद शाह) को लकेर नाव से वितस्ता नाड गये । (४:२१) अपने पक्षि ( श्येन - बाज) से पक्षियों को पकड़ने वाले, अपने पीछे भोज्यान्न सम्पत्ति युक्त, स्वतन्त्र प्राप्ति से गर्वान्ध (वे ) काश्मीरियों का अनादर किये, ( ४:२२) मानो पुनः न आने के लिये पक्षियों का नाश कर, एक बार अपने लोगों (संवियों) से मिलकर मन्त्रणा किये।' (४:२४)
वर्जित किया गया था । हैदर शाह के समय जबतक
जैनुल आबदीन के समय पशु-पक्षी हत्या, शिकार आदि केवल व्यसन अथवा खेलादि में करना राजदरबार में काश्मीरी सामन्तों एवं कुलीनों का काश्मीर की पुरातन परम्परा का पालन किया जाता
प्राबल्य था, निरर्थक पशु एवं पक्षी हत्या वर्जित थी
।