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भूमिका भोगा और वहीं वह बन्दी बना, वहीं उसकी आँख फोड़ी गयी और वहीं तीन वर्ष यातना भोग कर मर गया।
श्रीवर बलवती भाषा में लिखता है-'विधाता बलवान् होता है न कि पुरुष ।' (४:३४६) 'विधाता के प्रतिकूल होने पर, राजपुरुष, पाप, पुण्य, दक्षता पर अपना दूषण, स्तुति कुछ नहीं समझता । (४:३८९) 'विधाता के विपरीत कहाँ गति है।' (४:३९४)
'जब तक मनुष्य एक कार्य की चिन्ता त्यागता है, तब तक विधाता, उसके लिये दूसरी चिन्ता का विषय उपस्थित कर देता है। पूर्णिमा आने पर, चन्द्रमा को कृशता समाप्त होते ही, कान्ति के हरणकर्ता ग्रहण का भय उपस्थित हो जाता है।' (४:४००)
श्रीवर भाग्य को ही मानव की उन्नति-अवनति का कारण मानता है-कल्पना से परे, विचित्र काकतालीवत् वायुपुंज जिस प्रकार संरूढ़ किसी वृक्ष को गिरा देता है और गिरने योग्य को उठा देता है, उसी प्रकार विधाता भी किसी प्रवृद्ध पुरुष को अनवसर ही, अवनति के गर्त में गिरा देता है और किसी गिरने योग्य को उन्नत कर देता है।' (४:४९७)
विधाता के विषय में लिखता है-कभी प्रसन्न होकर, सार्वजनिक सुख पैदा करता है, कभी कुटिल होकर, जनता को इति भीति से चकित कर देता है, इस प्रकार संसार को परिवर्तन पूर्वक नीचा, ऊँचा, फल देने वाले, ग्रह के आकाश गति के समान, आश्चर्य है, विधि की गति विचित्र होती है ?' (४:५२२)
श्रीवर एक और उदाहरण उपस्थित करता है-'आश्चर्य है तीन बार आने से भी हैदर शाह, जो कार्य नहीं कर सका, वह विधिवश, हीनबल होने पर भी फतह खाँ ने कर लिया।' (४:६१८)
इसी प्रकार श्रीवर लक्ष्मी किंवा सम्पदा का भी वर्णन करता है-'प्रजाओं के विनाश हेतु उस देश के कष्टप्रद दुष्टों ने त्राण रहित आदम खाँ को लक्ष्मी एवं भाग्य से वंचित कर दिया।' (१:३:१००) श्रीवर उदाहरण देता है-'ज्येष्ठ (आदम खाँ) शौर्य एवं सेना युक्त होकर भी, तथा जन्म भूभि प्राप्त करके भी, धन प्रपंच प्राप्त कर लिया, किन्तु प्रयत्न करने पर भी, वह समुचित रूप से राज्य नहीं प्राप्त कर सका। निश्चय ही भाग्य के बिना वांच्छित अर्थ की सिद्धि नहीं होती' (२:१११) इस भाग्यवाद को श्रीवर इतनी दूर तक खींचकर ले गया कि युद्ध में स्थित सेना भाग्य से नियन्त्रित होकर, युद्ध नहीं करती-गरम होते मार्गेश, स्फुरित युद्धेच्छुक लोग, उनके भाग्य से नियन्त्रित सदृश होकर, उन लोगों से युद्ध न कर सके ।' (३:३८८)
धूमकेतु : धूमकेतु या केतु तथा उल्कापात का क्या प्रभाव देश, राजा तथा प्रजा पर पड़ता है, इसका उल्लेख श्रीवर ने बहुत किया है-'सुखी राजा का अपने जनों से विरोध होना शाप है, जो कि विकसित होते रूप नलिनी के लिये हिमपुंज, लोक के विनाश हेतु उदित महाक्षयकारी धूमकेतु एवं विघ्न में लगे दुष्ट उलूकों के लिये निशान्धकार है।' (१:१:१७४)
रात को उत्तर दिशा में ईति (अतिवृष्टि अनावृष्टि आदि) के आगमन के लिये सेतु तथा सर्वजन क्षय के हेतु धूमकेतु दिखाई दिया।' (१:७.१०) धूमकेतु अनिष्ट का सूचक होता है-'पूर्व दिशा की ओर आकाश में अनिष्ट सूचक, विस्तृत पुच्छ केतु (पुच्छल तारा) उदित हुआ। बहराम खाँ ने उसे पहले देखा। (२:११६) उसका दूर तक विस्तृत काल कुन्त सदृश, पूछ को दिन में भी; पश्चिम दिशा की ओर स्फुरित