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भूमिका
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( ३: ११९, १२० ) इस प्रकार तीन वर्ष तक महान् दुःख' का अनुभव कर, दुःख से अस्थि पंजर शेष मात्र शरीर, वह कष्ट पूर्वक उसी में विनष्ट हो गया ।' (३:१२३), जैनुल आबदीन सुल्तान ने अपने विरोधियों को शाप दिया था। उसका परिणाम उन्हें भुगतान पड़ा। धीवर लिखता है उस जैन भूपति का यह विनाशका शाप, राज्य का अहित चाहने वालों लोगों के कुल पर हाथ फैलाया । ( ३:१४९ ) बहराम खां का नेत्रोत्पाटन जोन राजानक के कारण हुआ था । प्रजा ने उसे शाप दिया था । उस शाप का फल जोन राजानक को भोगना पड़ा। श्रीवर लिखता है - 'जोनराजानक, बहराम खां के नेत्रोत्पाटन के कारण, अपने शरीर को प्रजा के शाप का पात्र बना लिया' ( ४:३६९) जहांगीर कारागार में दु:खी होकर अपने विरोधियों को शाप दिया- 'यदि मैं सुविशुद्ध हूँ, तो मेरा द्रोह करने वाले ये मार्गेश, ताज भट्टादि थोड़े ही दिनों में इसका फल पायें ।' (३:४१८) श्रीवर लिखता है -' बन्धन में स्थित, दुःख से दग्ध, इस प्रकार जो कहा, शीघ्र उसका फल देखकर लोग आश्चर्य किये। ( ३:४१९)
प्रजादोष
देश पर विपत्ति आदि आने का कारण प्रजा का दोष श्रीवर देता है। प्रजा के पुण्य से जिस प्रकार, देश में समृद्धि होती है, उसी प्रकार देश की दुर्दशा भी प्रजा के दोष के कारण होती है उस राजा के स्वर्ग गत होने पर, इस मण्डल में आचार-विचार नष्ट हो गया और प्रजा के दुराचार से ही लोगों का विनाश हुआ— यह मेरा मत है ।' (४:५०३) यदि राजा को दुःख होता है, तो उसका कारण भी प्रजा का दोष ही है — 'दुष्ट पुत्रों से, जो वह (जैनुल आबदीन) व्यथित हुआ, यह हम लोगों का भाग्य विपर्यय ही है। इस प्रकार मार्ग में रुदन एवं क्रन्दन पूर्वक, पुरवासियों की वाणी सुनकर, पाद दाह की व्यथा से पीड़ित भी नृप नगर से निकल पड़ा । ' (१ : ३ : १०५ ) यदि देश में बाढ़ आ जाती है, फसलें नष्ट हो जाती हैं, तो उनका भी कारण प्रजा का दोष ही है - 'पुराणों में प्रसिद्ध, शोकनाशिनी, विशोका नदी प्रजा के भाग्य विपर्यय के कारण, उस समय विपरीत अर्थ वाली हो गयी थी । ' ( १ : ३ : १५ ) ( प्रजा के भाग्य विपर्यय के कारण सब लोगों को कष्ट देने के लिये छवि हीन होकर आतुर राजा कल्पान्त के सूर्य सदृश अस्त होने लगा ।' (१:७:२१५ )
सुल्तान हैदर शाह के बुरे कर्मों का कारण भी प्रजा का भाग्य विपर्यय श्रीवर बताता है - 'दुष्ट मन्त्रियों द्वारा प्रेरित, मद से चेतना रहित, राजा प्रजाओं के भाग्य विपर्यास के कारण, अविवेक पूर्ण कार्य करने लगा ।' (२:४१ ) श्रीवर मुसलिम रचनाओं का भी उल्लेख करता है कि वे भी उसके सिद्धान्त का समर्थन करते है । (२:१३२)
जोनराज ने देश दोष का कारण प्रजा के भाग्य विपर्यय को माना है । (श्लोक : ५९७) कल्हण ने भी इस सिद्धान्त को स्वीकार किया है । (रा: १:३२५, २:४५, ४:६२० )
अन्त में श्रीवर लिखता है - ' पत्र, पुष्प तथा फल से सुन्दर वृक्ष, एवं तरल तरंगों से युक्त नदियाँ, शब्द युक्त पिक आदि जो होते हैं, वे हिम ऋतु में क्रमशः शीर्ण, शुष्क एवं मूक हो जाते हैं । काल विपर्यय से क्या नहीं होता ?' ( ४:६३५)
भाग्य :
श्रीवर भाग्यवादी है । मुसलिम दर्शन किस्मत सिद्धान्तो से अछूता नहीं है । उसने भाग्य को घटनाओं, दुर्भाग्य एक सौभाग्य का कारण माना है। प्रथम सर्ग में श्रीवर ने अपना विचार प्रकट किया है। हाजी खाँ ( सुल्तान हैदर शाह) जब अपने पिता के विरुद्ध राज्य प्राप्तिकी लालसा और उसे राज्यच्युत कर स्वयं सुल्तान