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जैनराजतरंगिणी
श्रीवर पुनः लिखता है-'मंगल वर्ष का वह मास वर्णाचार का विपर्यास एवं पुरश्री के निर्वासन हो जाने पर, निवास भयकारी हआ। अथवा पूर्व कर्ताओं के पुण्य क्षय हो जाने पर, नवीन कत्ताओं के निर्माण कीर्ति हेतु विधि (इस प्रकार) करता है।' (३:२९१, २९२) श्रीवर बलवती भाषा में लिखता है'निश्चय ही पुण्य के बिना अभिलाषाएँ पूर्ण नहीं होती।' (१:७।१९८)
शाप:
श्रीवर ने शाप को बहुत महत्त्व दिया है। शाप का परिणाम होता है। उसने तत्कालीन काश्मीरी जनता के मनोभावों को प्रकट किया है । मुसलिम दर्शन शाप में विश्वास नहीं करता परन्तु काश्मीरी मुसलमानों में यह संस्कार आज से तीन सौ वर्ष पहले पूर्णरूपेण विद्यमान था। सुल्तान जैनुल आबदीन अपने पुत्र को शाप देता है-'तुम्हें धिक्कार है, जो कि तुमने मुझे त्यागकर, दूसरे को पिता स्वीकार किया। हे मूढ़ !! मेरे वचन का जो उल्लंघन कर, जो दृष्टि की है, उसका शीघ्र ही नाश होगा, इसमें सन्देह नहीं है। (१:७:९५-९६) मेरे द्वेषी जो सुतादि है, वे भी चिरकाल तक स्थित नहीं रहेंगे, धान्यफल का भोग कर, क्या शलभ( टिड्डी) नष्ट नहीं हो जाते ? (१:७:११७) इस समय युक्ति से, इस जीवन के निकल जाने की इच्छा करता हूँ, जिससे सब पुत्रों का मनोरथ पूर्ण हो जायगा ।' (१:७:११८) इस प्रकार उद्विग्न एवं दुःखी सुल्तान जप परायण होकर, श्वास लेते हुए शाप दिया-'उनकी स्मृति मात्र शेष रह जायगी।' (१:७:१७१) .
जैनुल आबदीन ने अपने मन्त्रियों तथा सभासदों को भी राज्य में अराजकता फैलाने के कारण शाप दिया। वह शाप भी सुल्तान के मृत्यु के पश्चात् फलित हुआ-'श्री जैन भूपति की जो भव्यकारक सभा थी, वह सब एक ही वर्ष में, उसके शाप से स्वप्नवत् हो गयी।' (१:७:२७४)
पुत्र हैदरशाह को भी जैनुल आबदीन ने शाप दिया था। श्रीवर पुत्र हैदर खाँ के मरने का कारण पिता का शाप देता है-'निश्चय ही पितृशाप एवं तत् तत् पाप से दूषित वह, जल्दी से हिम पुंज के समान, विलय हो गया।' (२:२०७)
श्रीवर पाप परिणाम का भी वर्णन करता है । वह खुली घोषणा करता है । शाप का फल होता है । उससे वचना कठिन है-'अथवा वह पिता (सुल्तान) का शाप ही उसके लिए फलित हुआ, जो अपने देश में आने पर भी (आदम खाँ) परदेश में मरा।' (२:११२)
श्रीवर शाप की मान्यता फारसी ग्रन्थों के आधार पर देता है कि हिन्दुओं के समान मुसलमानों में भी शाप का परिणाम होता है-'पारसी भाषा के काव्य में प्रजाओं के दोष के लिए, जो कहा गया है, वह शाप श्रीमत् जैन सुल्तान के देश में फलित हुआ।' (२:१३२)
जैनुल आबदीन के शाप के विषय में श्रीवर और लिखता है- 'कुछ लोग कहते थे यह पिता का • शाप से विमढ़ हो गया था, (३:८) जैसा कि किसी समय पिता से विवाद होने पर कहा-'बहुत बार तुम्हे युद्ध में देखा है, तो जहाँ मैं युद्ध के लिये समर्थ नहीं था तथा दीन एवं खंग धारा चाह रहा था, वहाँ तुम बहुत घमण्डी थे, क्या कहूँ ? दुष्ट बुद्धि तुम्हारे उत्पादन योग्य नेत्रों को देख रहा हूँ, अतः शीघ्र ही नष्ट एवं पश्चात्ताप युक्त होगे।' (३:९४,९६) कालान्तर में भाई द्वारा ही बहराम खां की आंखें निकाल ली गयीं । श्रीवर परिणाम पर, दुःख प्रकट करता है-'स्वामित्य नष्ट हुआ,.भृत्य मारे गये, नया पराभव प्राप्त हुआ, श्रृंखला बद्धों से बन्धन मिला, नेत्रोपाटन की व्यथा हुई। इस प्रकार, वह अन्धा राजपुत्र, चिरकाल तक अपने दुःख को स्मरण करते हुए, पुरानी कथाओं में भी अपने समान किसी को नहीं माना ।