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जैन राजतरंगिणी
फतह सौ काश्मीर में जब राज्य प्राप्ति के लिए प्रवेश किया, तो उसका सामना करने के लिए सुल्तान मुहम्मद सहित जहाँगीर गुसिक स्थान में शिविर लगाया ।
जहाँगीर स्वयं शकुनविद् था । श्रीवर उसके सन्दर्भ में लिखता है - 'उसके अश्वारोहण के समय अश्व त्रस्त हो गया । क्रोध से निष्ठुर, वह शकुन जानकार होने पर भी, क्षण भर नहीं ठहरा । (४:५२८)
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अपशकुन श्रीवर ने अपशकुनों का अत्यधिक वर्णन किया है। उससे शकून शास्त्र के गम्भीर अध्ययन का बोष होता है । उसके अनुसार निम्न लिखित अपशकुन होते हैं। घटना क्रम से उनका वर्णन कर प्रमाणित किया है कि अपशकुन का प्रभाव पड़ता है— रात्रि में केतु दिखाई देना ( १:१:१७४), धूल वर्षा से दुर्भिक्ष पड़ना (१:१:१०, १: ३ : ३ ), कुत्तों का रोना ( १ : ७:१४) एक पक्ष में चन्द्र एवं सूर्य ग्रहण का लगना (१ : ७ : १५ ) उल्लू का बोलना (१:७:१७-१८), भूकम्प (२:११४), घोड़ी को युगल बच्चा होना ( २:११८), कुलिया से बिडाल बच्चा होना ( २ : ११९), दिन में सिंह आदि हिंसक पशुओं का भ्रमण ( २:११९), सदानन्दी वृक्ष का फलयुक्त होना, अनार वृक्ष का राजगृह के समीप जड़ से फूलना (२:१२० ), वस्त्र पर घर वर्षा (२:१२१), चील्ह पक्षी द्वारा मार्गावरोध (३:३७६), अश्व का पैर से छाती पीटना, आँसू बहाना (३:३७७), सर्प का रास्ता काटना (३:५२९, ४:७२), रात्रि में भैंसा देखना, आसन्न मृत्यु ( ३: ५५१), यमका महिष देखना ( ३:५५५), घोड़ेपर चढ़ते समय रकाब टूटना ( ४:३०), रात्रि में उल्कापात, बार बार भूकम्प (४:२१४, ३५९) आदि ।
गोबध :
काश्मीरी मुसलमानों में गोवध प्रचलित नहीं था। विदेशी मुसलमान व्यापारी, विदेशी संविद तथा तुर्क मुसलमानों का काश्मीर में प्रवेश हो गया था। उनकी स्थिति दिन पर दिन मजबूत होती गई। संस्था बढ़ती गई । काश्मीरी मुसलमानों के विरोधी थे । काश्मीर में काश्मीरी मुसलमान तथा विदेशी मुसलमानों में संघर्ष की स्थिति सर्वदा आसन्न रहती थी। उनका यथा स्थान उल्लेख किया गया है ।
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काश्मीरी मुसलमानों में गोबध निषेध संस्कार मजबूत था । वे हिन्दू आचार-विचार रखते थे । काश्मीर पर आने वाली अनेक विपत्तियों का कारण काश्मीरी गोबध मानते थे । श्रीवर ने इसका विस्तार से वर्णन किया है - ' किसी समय, जन्म से हिन्दू आचार वाले, पौर वणिकों ने जो मौसुल ( मुसलिम ) वल्लभ थे, नगर में गोबध किया । ( ३:२७० ) उन दुराशयों ने जहाँ पर गायों की हत्या की थी और उनका मांस खाया था, वह बिहार, वह नगर, शुद्धि हेतु, स्वयं को अग्नि में डाल दिया ।' (३:२७१) अर्थात् उस स्थान तथा नगर में अग्नि लग गई और गोमांस खाने वाले स्थान सहित नगर सहित भस्म हो गये। 'देश में अकस्मात् सैकड़ों उत्पातों से युक्त, विघ्नपात से दु:सह, नैऋत्य दिशा की वायु उठी । ( ३:२७२ ) पचपन (लौ० ४५५५ सन् १४७९ ई०) वर्ष प्रवरेशपुर (श्रीनगर) के अन्दर गौ सैनिकों (गोवधिकों) के आपणों ( बाजारों) के समीप से अकस्मात् अग्नि उत्पन्न हुई । ( ३:२७५) मारी तट के एक भाग में स्थित वह (अग्नि) गुलिका वाटिका तक फैल गई। क्षण भर में नगर भूमिदाह से दग्ध अरण्य सदृश हो गया । (६:२७६) अग्नि] फलते-फैलते सिकन्दर द्वारा निर्मित बृहन्मसजिद ( ईदगाह ) तक स्वतः पहुँचकर उसे भी भस्म कर डाला 'कल्पाग्नि से निर्दग्ध, विश्व की ज्वाला पुंज का भ्रम करते हुए (यह) क्षण मात्र में मिति मात्र रह गई।' (३ : २८५)