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भूमिका मुहम्मद शाह के राज्यकाल में सैयदों के क्रूर गौ वध की उपमा देते, श्रीवर लिखता हैजिस प्रकार गो का वध करने से पाप का भय नहीं हुआ था, उसी प्रकार सैयिदों के वध में मद्रों को घृणा नहीं हई। (४:५०) सैयिदों ने ही अत्याचार नहीं किया, उनके सेवक भी काश्मीरियों को चिढ़ाने के लिए गौवध करते थे-'विरोधियों का घर लूटते तथा उनका धन अपहरण करते, सैयिद भृत्य गोवध आदि के द्वारा प्रजाओं में भय व्याप्त कर दिये थे।' (४:१२४)
काश्मीरी एवं सैयिदों के युद्ध में भी गो वध का प्रश्न खड़ा हो गया था। काश्मीरियों को आतंकित करने के लिए, गोवध आदि का भय सैयिद दिलाते थे। सैयिद विप्लव काल में युद्ध के समय काश्मीरियों के सन्धि प्रस्ताव का उत्तर देते, सैयिदों ने कहा-'तुरुष्कों को किस वस्तु को घृणा है ? हम लोग सर्व मांस भोजी है । जब तक पुरुष, पशु, गोमांस पर्याप्त है, तब तक स्थित रहेंगे।' (४:२४५)
सैयिदों के पराजय का कारण श्रीवर देता है-'उसके भृत्यों ने देश को लूटा था, नगर मैं गोवध किया था' । श्रीवर गोवध पर अपना मत व्यक्त करता है-'उस राजा के स्वर्ग गत होने पर, इस मण्डल में आचार-विचार नष्ट हो गये और प्रजा के दुराचार से ही लोगों का विनाश हुआ--यह मेरा मत है । (४:५०३) जैसा कि कुछ वणिकों ने हिन्दुओचित अपना आचार त्याग कर, पुर में मारकर, गोभक्षण किये ।' (४:५०४) जैनुल आबदीन ने गोहत्या राज्यादेश से बन्द करा दिया था।
पक्षी हत्या : काश्मीरियों में पक्षियों की हत्या या उनका शिकार खेलना वजित था। परन्तु विदेशी सैयिद वाज पालते थे । वाज से शिकार करते थे। पक्षियों का मांस खाते थे। पक्षियों की हिंसा करते थे। उनके भृत्य भी पक्षियों की हिंसा में रुचि लेते थे । श्रीवर दुःख प्रकट करता है-'सतीसर (काश्मीर) में पक्षियों की जो निश्चल सुखद स्थिति थी, उनकी उस स्थिति को, मांस की आशा से, श्यैन एवं भृत्यों ने दूर कर दिया। (४:१९) अपने पक्षी (श्यन-वाज) से पक्षियों को पकड़ने वाले, अपने पीछे भोजान्य सम्पत्ति युक्त स्वातंत्र्य प्राप्ति से गर्वान्ध, (वे) काश्मीरियों का अनादर करने लगे। (४:२२) 'उसके भृत्यों ने देश को लूटा, नगर में गोवध किया था, मानो भृत्यों के अपराध के कारण ही उनकी यह दशा हुई ।' (४:३०९)
पाप: श्रीवर ने पाप-पुण्य को देश तथा मनुष्य की उन्नति अवनति का कारण बताया है । पाप के परिणाम के विषय में लिखता है-'जो जिस प्रकार अजित किया गया, शीघ्र ही शत्रुओं ने, उसी प्रकार (उसे) अपहृत कर लिया। पाप द्वारा अर्जित सम्पत्तियाँ चिरकाल तक घरों में नहीं रहतीं।' (४:३८८) फतहशाह के राज्य प्राप्त करने पर, निन्दित पाप का फल इन तीनों को मिला यह, उनके मरने के समय श्रीवर के अनुसार लोगों ने देखा। सुल्तान तथा खान की सेना में सन्धि नहीं हुई, उसका भी दोष श्रीवर प्रजा का पाप देता है (४:५१९) पाप के प्रक्षालित करने के विषय में सुन्दर युक्ति देता है-'विद्या तीर्थ पर शास्त्रज्ञ, सत्य तीर्थ पर साधुजन, गंगा तीर्थ पर सब मुनिजन, अध्यात्म तीर्घ पर योगी, लज्जा तीर्थ पर कुल युवतियां, दान तीर्थ पर वदान्य (उदार), धारा तीर्थ पर धरणीपति पाप को प्रक्षालित करते हैं।' (३:९३)
पुण्य : पुण्य के कारण राज्य की उन्नति होती है। उसका उल्लेख श्रीवर करता है-'क्षमाशील स्वामी, कृतज्ञ, एवं गर्व रहित मन्त्री का संयोग प्रजाओं के पुण्य से बहुत दिनों पर देखा गया।' (३:३४)