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भूमिका
४९ (१:४:४४) मद्यपान की बुराई श्रीवर करता है-'चषक में मद्य, जो लाल रंग धारण करता है, मानो मद्यपान मे प्रवृत्त लोगों के हृदयरक्त से ही रक्त वर्ण होता है।' (१:७:६७) जैनुल आबदीन अति मद्यपान का घोर विरोधी था। उसका पुत्र हाजी खाँ (हैदरशाह) अत्यन्त मद्यपान करता था। उसे समझाते हुए, सुल्तान ने कहा-'यादव संहार, अनेक राजाओं का नाश, मलिक जसरथ, शाहमसौद, सभी अपनी प्रतिष्ठा तथा सम्मान खोकर समाप्त हो गये थे।' (१:७:६३-६५) सुल्तान अपने पुत्र हाजी खाँ को उपदेश देता है-'शरीरधारियों के लिए, इस मद्य के समान कोई शत्रु नही है, सेवित शत्र हितकारी होता है और अति सेवित मद्य मार डालता है। सुरा में मदमत्त जन, जो अनुचित कार्य करते है, उन्मत्त भी वह नही करेगा, क्योंकि वह उससे भागता है। मद्यरूप वैताल हास्य एवं रोदन क्रिया युक्त, हृदय में प्रवेश करके, क्षण भर मे किनके प्राणों का हरण नहीं कर लेता ?' (१:७:६८-७०)
हाजी खाँ जब हैदरशाह के नाम से जैनुल आबदीन के पश्चात् सुल्तान हुआ, तो मद्यपान खुलेआम आरम्भ हो गया। सुल्तान जब खुलकर, शराब पीता था, तो जनता मे मद्यनिषेध नीति चल नही सकती। श्रीवर उस समय की अवस्था का उल्लेख करता है-'मद्य लीला व्यसन के कारण, बाह्य देश के समान, उस राज्य में भी अंगूर के समान, गुड़ से बने सुरा का प्राचुर्य हो गया था। सर्व भोग पराङ्मुख राजा के मद्य के प्रति रसिक हो जाने पर, खाँड़ आदि ईख के विकार सुलभ नही रह गये, शीरा (शराब) हो गये। (२:५४-५५) हैदरशाह की मृत्यु का तात्कालिक कारण सुरापान था-'उसी अवसर पर, मानो मृत्यु से प्रेरित होकर, राजा भृत्यों के साथ मद्यपान करने के लिए, राजप्रासाद पर चढ़ा। वहाँ पुष्कर सौघ के अन्दर, काँच मण्डप मे लीला पूर्वक दौड़ते हुए, गिर पड़ा। नाक से बहते रुधिर से वह विक्षुब्ध हो गया। भृत्यु उसकी काँख में हाथ डालकर, शयन मण्डप में ले गये। नष्ट छाया दर्पण तुल्य, वह शयन पर पड़ गया।' (२:१६८-१७०)
हैदरशाह के पश्चात् सुल्तान हसनशाह के समय श्रीवर पान लीला (३:२६) का वर्णन करता है । तत्कालीन समाज मे सुरा पान फैशन हो गया था। जनता मुक्त रूप से मदिरा सेवन करती थी। सुल्तान खुले दरबार में मदिरा पीता था। नर्तकियों के हाथों से मद पात्र प्रसन्नतापूर्वक लेता था-'इस प्रकार प्रशंसा करते हुए, नवयुवक राजा ने लीला मित्रों के साथ, उन (नर्तकियों) से मद्यपात्र ग्रहण किया।' (३२५२) सुल्तान अपने मन्त्रियों आदि के साथ पान लीला करते थे। मदमत्त हो जाते थे । एक दूसरे पर वृष्णियों के समान वाक् वाण प्रहार करते थे। (३:३६६, ३६७) इससे प्रकट होता है, सुल्तान खुलकर मद पान करता था। उसका अनुकरण दरबारी तथा जनता करती थी। मुहम्मदशाह के समय सैयिद विप्लव के प्रसंग मे श्रीवर के लेख से प्रकट होता है कि मदिरा पान जनता में व्याप्त था।
शकुन: श्रीवर ने शकुनों का बहुत उल्लेख किया है। काश्मीरी शकुन एवं अपशकुन पर विश्वास करते थे । जनता मुसलमान हो जाने पर भी पूर्व हिन्दू संस्कार त्याग नहीं सकी थी। मुहम्मद बालक सुल्तान था । अभिषेक के पश्चात् प्रदर्शित सामग्रियों मे केवल धनुष पर ही हाथ रखा । धनुष शुभशकुन माना जाता है । शाकुनिकों ने इसका अर्थ लगाया कि उसके राज्य काल में युद्ध होता रहेगा। (४:५) जैनुल आबदीन के विरुद्ध आदम खाँ ने जब संघर्ष का विचार किया तो, फिर्य डायर एवं ताज तन्त्री ने कहा-'कल्याण मंगलकारी शकुन नहीं है। देश एवं पर्वत दुर्गम है। वह तुम्हारे पिता है । इसलिये हमलोगों के युद्ध का समय नहीं है । (१:१:१०४)