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4 और पुत्र का युद्ध अनेक धार हुअा है. तथा इन्द्र ने जसको पराजित किया है।
इन्द्रो वै शुभं रवा विश्वकर्माऽभवत् । ऐ० ४ । २२ जमा शतपथ में है कि वृत्रको मार कर इन्द्र महेन्द्र बन गये । पारसी लोग इन्द्र के शत्रु थे उनके धर्म प्रन्य अवस्था के
फदिमें इन्द्रको पापमति कहा है । तथा इन्द्रके उपासकोंको मासे निकालनेका आदेश दिया गया हैं। तथा ऋग्वेब में- में अविरोधियोंको देशसे निकालनेका श्रादेश है। तथा च ऋग्वेद
१.८०३ मैं कहा गया है कि मेम ऋषि ने कहा है कि-- नाम का कोई खता नहीं है उसे किसने देखा है। - मेन्ट्रो अस्तीति नेम उ त्य आह कई दर्दश ।
यहाँ नेम ऋषि कौन है यह विचारणीय है।
प्रसिद्ध वैदिक विद्वान रामानाथ सरस्वती का कहना है फ्रि-- . त्रअसोरीया का नामी सेनापति था।
अभिप्राय यह है कि-ग्रह युद्ध और शक्ति का श्रादर्श देवता हैं। सोम ( शराब ) इसको अति प्रिय थी जहाँ कहाँ सोम रसी गन्ध आजाती थी वहीं यह श्रा धमकाने थे। मांस इनका सबसे प्रिय खाद्य पदार्थ था। इस प्रकार यह रजोगुण और तमोगुण प्रधान शनिाशाली देवता है । इसका वर्ण क्षत्रिय माना गया है।
इन्द्रो देवानामो जिष्टोवलिष्ठः ।। कौ० ब्रा० ६।१४
अर्थात देयों में इन्द्र हो अत्यन्त शक्तिशाली है । नथा श्रुतिमें कहा है कि