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६ बोल पृष्ठ ४०७ से ४०८ तक । निद्रा ना कल्प (वृ० क० ३)
७ बोल पृष्ठ ४०८ से ४०६ तक। द्रव्य निदा ( आचा० अ० ३ उ०१) इति श्रीजयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने निर्ग्रन्थ निद्राऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता।
एकाकि साधु-अधिकारः ।
१ बोल पृष्ठ ४१० से ४१० तक। एकाकी पणो न कल्पे (व्यव० उ० ६)
२ बोल पृष्ठ ४११ से ४११ तक । अगडसुया ना कलप ( व्यव० उ०६)
३ बोल पृष्ठ ४११ से ४१२ तक । वली कल्प (वृह० उ०१ बो० ११)
__४ बोल पृष्ठ ४१२ से ४१४ तक। एकला में ८ अघगुण (आचा० श्रु. १ अ० ५ उ०१)
५ बोल पृष्ठ ४१४ से ४१६ तक। एकला नो कल्प (अ० श्रु० १ अ० ५ उ० ४)
६ बोल पृष्ठ ४१७ से ४१८ तक । ८ गुणा सहित ने एकल पडिमा योग्य कह्यो ( ठा० ठा०८)
७ बोल पृष्ठ ४१८ से ४१६ तक । बहुस्सुए नो भावार्थ ( उवाई प्र० २०-२१)
८बोल पृष्ठ ४१६ से ४२० तक । घली कल्प (वृ० क० उ० १ बो० ४७)