Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 506
________________ अल्पपाप बहु निर्जराऽधिकारः रात्रि नों वासी पाणी स्त्री आदिक ना कह्यां सूं श्रावक जाणतो हुन्तो ते वासी पाणी ने किणही अनेरे वावरी लीधो अने ते ठाम में कात्रो पाणी घाल्यो, पिण ते श्रावक ने काचा पाणीरी खबर नहीं ते तो वासी पाणी जाणे छै। एतले साधु भाव्या तिवारे तेणे श्रावक ते वासी पाणी जाणी ने पोता नों व्यवहार शुद्ध निर्दोष चौकस करी ने साधु ने वहिरायो। पाणी तो अमाशुक, अने तेहनी पागड़ी में पक्षी आदिक सचित्त न्हाख्यो तथा सचित्त रजादिक :शरीर रे लागी तेहनी पिण श्रावक ने खबर नहीं, ए अनेषणीक ते असूझतो छै, पिणआपरा व्यवहार में प्राशुक एषणीक, जाणी अत्यन्त चौकस करी घy हर्ष आणीने साधुनें वहिरायो, तेहनें अला पाप, ते पाप तौ नहिंज छै। अनें हर्ष करी दीधां वहुत घणी निर्जरा हुवे। ए न्याय करी पाठ कह्यो हुवे तो पिण केवली जाणे ते सत्य । इम हिज भंगड़ा में धाणी में कोरो अन्न छै, अचित्त दाखां में सचित्त दाख छ। अचित्त स्वादिम में सचित्त स्वादिम है। इम च्यारू आहार सचित्त असूझतो छै, पिण धावक तो शुद्ध व्यवहार करी देवै तो अल्प पाप ते पाप न थी अनें बहुत निर्जरा हुई। ते पिण भचित्त सूझतो जाणी सर्वज्ञ जाणै ए न्याय सूत्र करी मिलतो दीसै छै । इति ५ बोल सम्पूर्ण। तथा इण हिज न्याय पर गाथा लिखिये छ। अहा कडाणि भुंजंति अण्ण मन्नेस कम्मुणा । उवलित्तिय जाणिजा अणुवलित्तेतिवा पुणो ॥८॥ एते हिं दोहिं ठाणेहिं ववहारो न विज्जइ । एएहिं दोहिं ठाणेहिं अणायारंतु जाणए ॥६॥ - (सूयगडाङ्ग श्रु० २ उ० ५ गा०.८६ ) प्रा० जे-साधु श्राश्री ६ काय मदर्दी में बस्त्र भौजन. उपाश्रयादिक. कोधा एतला. भु० उपभोग करे. ते. अ० माहोमाहो. स. पापण कमें उपलिप्त जाणीवा इसो एकान्त न बोले. अथवा कमें

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