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कपाटाऽधिकारः।
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रात्रि में विषे अथवा विकाल में विषे आबाधा पीड़ता किमाड़ खोलणा पड़े। ते खुलो देखी माहे तस्का आवे, बताया-न बतायां अवगुण उपजता कह्या । सर्व दोषां में प्रथम दोष किमाड़ खोलवा नों कह्यो। तिण कारण थी साधु ने किमाड़ खोलतो पड़े एहवे स्थानके रहिवो नहीं। तिवारे कोई कहे इहां तो साधु साध्वी बेहूं में रहिवो वयॊ छै । जो साधु ने किमाइ खोल्यां दोष उपजे तो साध्वी ने पिण किमाड़ न खोलणा । इम कहे- तेहनों उत्तर।
इहां “से भिक्खू भिक्खुणीवा" ए साधु रे संलग्न साध्वी रो पाठ कह्यो छै । पिण इहां अभिप्राय साधु नों इज छै। साध्वी नों न सम्भवे। कारण कि इण हिज पाठ में आगल कह्या "तंतवस्सिं भिक्खु अतेणं तेणं तिसंकति” इहां तपस्वी भिक्षु अचोर प्रति चोर नी शङ्का उपजै, ए साधु नों इज पाठ कह्यो। अने साधु रे साथे साध्वी रो पाठ कह्यो ते उच्चारण साथ आयो छै। जिम आचाराङ्ग श्रु० २ अ० १ उ० ३ में कह्यो-साधु साध्वी ने सर्व भण्डोपकरण प्रही गोचरी. विहार. दिशा जावणो कह्यो तिहां अर्थ में जिन कल्पिकादिक कह्यो । तो साध्वी ने तो जिन कल्पिक अवस्था न हुई, पिण साधु रे संलग्न साध्वी रो पाठ कयो छै। तिम इहां पिण साधु रे संलग्म साध्वी रोपाठ आयो जणाय छै । तथा वलो आचारांग श्रु. २ अ० २ उ० ३ एहवो कह्यो-गृहस्थ ना घर मे थई में जाणो पड़े ते उपाश्रय ने विषे साध्वी ने तो रहिवो कल्पे,अनें साधुनें न कल्पे । ते माटे इहां आचाराङ्ग में पह वी जगां रहिवो वो ते साधु नी अपेक्षाय सम्भवै छै । अनें साध्वो नों पाठ कह्यो ते साधु रे संलग्न माटे जणाय छै। तिम इहां पिण "से भिक्खूवा भिक्खुणीवा"ए साधु रे संलग्न साध्वी रो पाठ कह्यो सम्भवै छै। पिण इहां साध्वी रो कथव नहीं जाणवो । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो
इति ५ बोल सम्पूर्ण।
. तथा वली बृहत्कल्प उ० १ कह्यो साध्वी ने तो अभंग दुवार रहिषो कल्पे महीं । भने साधु ने कल्पे कह्यो ते लिखिये छै