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भ्रम विध्वंसनम् ।
अशनादिक ना दातार श्रावक ने कह्या। श्रावक ने तो असूझतो देणो न कल्पे । अने असूझतो लेणो साधु ने न कल्पे, तो असूझतो दियां अल्प पाप बहु निर्जरा किम हुवे। भगवती श० ५ उ० ६ कह्यो आधाकम्मों आदिक असूझतो आहारा ए निरवद्य छै। एहवो मन में धाटे तथा परूपे ते बिना आलोयां मरे तो विराधक कह्यो। तो सचित्त अनेअसूझतो जाण ने साधु ने दियां बहुत निर्जरा पहवी थाप उत्तम जीव किम करे। तथा वली भगवती श० ७ उ० १ कह्यो जे श्रावक प्राशुक एषणीक अशनादिक साधु ने देई समाधि उपजावे तो पाछो समाधि पामे इम कह्यो। पिण अप्राशुक अनेषणीक दियां समाधि पामती न कही। तो अप्राशुक अनेषणीक जाण ने दियां बहुत निर्जरा किम हुवे। केतला एक कहेकारण पड्यां श्रावक अप्राशुक. अनेषणीक. साधु ने बहिरावे तो अल्प पाप. बहुत निर्जरा हुवे। ते पिण विपरीत कहे छै। साधु ने असूझतो देणो श्रावक ने तो कल्पे नहीं। तो ते असूझतो किम देवे। अने कारण पड्यां पिण साधु ने असू. झतो न कल्पे ते किम लेवे। अने कारण पड्यां ई असूझतो लेसी तो सेठो कद रहसी। भगवान् तो कह्यो-कारण पड्यां सेंठो रहिणो पोड़ा अङ्गीकार करणी। पिण कारण पड्यां दोष न लगावे। राजपूत रो पुत्र संग्राम में कारण पड्यां भागे तो ते शूर किम कहिए। सती बाजे ते कारण पड्यां शील खंडे तो ते सती किम कहिये । तिम कारण पड्यां अशुद्ध लेवारी थाप करे तेहने साधु किम कहिए। अने तिहां “अफासु अणेसणिज्जेणं" एहवो पाठ कह्यो छै। ते "अफासु" कहिता सचित्त अनें “अणेसणिजण” कहिता असूजतो ते तो श्रावक शङ्का पड्यां कोई साधुनें न देवै । तो जाण ने अप्राशुक. असूझतो साधु ने किम देवै । अने साधु जाणनें सचित्त असूझतो किम लेवै। ते भणी कारण पड़यां अशुद्ध लेवारी थाप करणी नहीं। टीकाकार पिण केवली ने भलायो छै। ते टीका लिखिये छै।
“यत्पुनरिह तत्वं तत्केवलि गम्यभिति, अथ इहां पिण रीका में ए पाठ नों न्याय केवली ने भलायो ते माटे अशुद्ध लेवारी थाप करणी नहीं। ज्ञानी में भलावणो तथा कोई वुद्धिमान इण पाठरो अनुमान थी न्याय मिलावै पिण निश्चय थाप किम करै, जे अनेरा सूत्र पाठ न उत्थपै। अने ए पिण पाठ न्याये करी थापै एहवू न्याय तो उत्तम जीव मिलावै । तिवारे कोई कहै-एहवू न्याय किम मिले। तेहनों उत्तर-जे