Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 508
________________ अल्पपाप बहु निर्जराऽअधिकारः । ४५१ सद्धिं सिद्धत्थगामाओ नगराओ कुम्भ गाम नगरं संपट्टिए विहाराए॥ (भगवती श०१५) त तिवारे. अ० हूँ गोतम ! भ० एकदा प्रस्तावे. प० प्रथम शरत्काल समय में विषे माग शीप. अ० अविद्यमान वृष्टि छते. गो० गोशाला मखली पुत्र साथे. सि० सिद्धार्थ ग्राम. न० मगर थकी. कु० कर्म ग्राम नगर प्रते. सं० चाल्या विहार में भर्थे. अथ इहां कह्यो अल्प वर्षा में भगवान् विहार कियो। तो थोड़ी वर्षा में तो विहार करणो नहीं। पिण इहां अल्प शब्द अभाव वाची छै। अल्प वर्षा ते वर्षा न थी ते समय विहार कीधो। तिहां भगवती री टीका में पिण अल्प शब्द भभाव वाची एहवो अर्थ कियो छै ते टीका लिखिये छै। - "अप्पबुष्ठि कार्यसिति-अल्पशब्दस्याऽभाववचनत्वादविद्यमान वर्षेत्यर्थः" अथ इहां पिण अल्प शब्द नों अर्थ अभाव कियो। अस्प वर्षा ते अविद्यमान घर्षा :( वर्षा नहीं ) इम टीका में अर्थ कियो छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ७ बोल सम्पूर्ण। तथा पाठ लिखिये छ। अप्प पाण प्पबीजंमि पडिच्छन्न वुडेम्मिसं समयं संजए भुज्जे, जयं अपरिसाडियं ॥३५॥ (उत्तराध्यान अ० ६ गाय ३५) अ० अप ( न थी ) प्राणी द्वीन्द्रियादिक. भ. अल्प ( नथी ) बीज. अन्नादिक ना, प. सक्योड़ी. एहवी भूमि में विषे. स० भाचार वन्त. सं० साधु. भु० खा. ज० यत्ना सहित. भ. माहार में भण नाखतौ थको.

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