Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 509
________________ भ्रम विध्वंसनम् । । प्राण इहां पिण कह्यो - अल्प प्राणी अल्प बीज है जिहां ते स्थानके साधु ने आहार करवो । तिहाँ टीका में अल्प शब्द अभाव वाची इन अर्थ कियो छै बीज न हुवे ते स्थानके आहार करियो । “अविद्यमानानिवीजानि" इति टीका । इहां टीका में पिण नहीं छै बीज जिहां एहवो अर्थ कियो । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति ८ बोल सम्पूर्ण । ४५२ तथा आचाराङ्ग में पिण अल्प शब्द अभाववाची कह्यो - ते पाठ लिखिये छै 1. सेय च पड़िगाहिए सिया से तं आयाए एगंत मवक मेजा एगंत मवक्कमित्ता आहे आरामंसिवा हे उरसयंसिवा अप्पंडे अप्पपाणे अप्पबीए. अपहरीए अपोसे अप्पोदए. अप्पुत्तिंग-पग दग. महिश्र मक्कडा. संताणए. विगिंचिय. २ उम्मीसं विसोहिय २ तो संजया मेव भुंजिजवा पीइजवा. • ( आचाराङ्ग. श्रु० २ ० १ ० १ ) से० ते ० अकस्मातू. प० अजाणपणे सचित आहार में प० ग्रहण करे सि० कदाचित. से० ते. तं० ति श्रहार नें. श्रा० ग्रहण करी ने ए० निर्जन स्थान ने विषे. म० जावै. ए० एकान्त में. जावी . ० हे. प्रा० वाग ने विषे अ० हेठे उपाश्रय नें विषे. अ० अल्प न थी अण्डा. अल्प नथी. प्राणी. अल्प न थी बीज. श्र० अल्प न थी लोलौती अल्प न थी श्रोस. अल्प न थी जल. अल्प न थी तृणस्थित जल. १० तथा फूलन द० पानी. म० मिट्टी म० मांकड़ी रा. सं० जाला एहवा स्थान ने विधे. वि० काढी काढी नें मि० मिल्या हुवा ने. वि० शोधी नें त० तिवारे. स० साधु खावे तथा पी. अथ इहां पिण अल्प शब्द अभाववाची कह्यो । प्राण बीजादिक नहीं होवे, ते स्थानके शुद्ध करी आहार करवो । टीका में पिण इहां अल्प शब्द अभाव

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