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श्रीभिक्षु महामुनिराज कृत अथ कपाटाधिकारः।
फेई पाषण्डी साधु नाम धराय ने पोते हाथ थकी किमाड़. जड़े उघाड़े, अनें सूत्र ना नाम भूठा लेई में किमाड़ जड़वानी अनें उघाड़वानी अणहुँती थाप करैछ। पिण सूत्र में तो ठाम २ साधु ने किमाड जडणो तथा उघाडणो वज्यौं छै। ते सूत्र ना पाठ सहित यथातथ्य लिखिये छ।
मनोहरं चित्त हरं मल्ल धूवेण वासियं । सकवाडं पंडुरुल्लोवं मणसावि न पत्थए ॥४॥
(उत्तराध्ययन अ० ३५ )
म. सुन्दर. च० चित्रघर. स्त्री प्रादिक ना चित्र युक्त तथा. म० माल्य. पुष्यादिके करी तथा धू० धूपे करी सुगन्धित स० किमाड सहित. पं० श्वेत वस्त्रे करो ढाक्यो एहवा मकान में साधु. म. मन कर पिण न० नहीं. प० वान्छे ।
अथ अठे इम कयो-किमाड सहित स्थानक मन करी ने पिण वांछणो नहीं । तो जड़वो किहां थकी। अने केई एक पाषण्डी इम कहै छै। ए तो विषय कारी स्थानक वज्यों छै । पिण क्रिमांड जड़णो वो नहीं । तेहनों उत्तर-मनोहर चित्राम सहित घर-रहिवा ने अने देखवा ने काम आवै। तथा फूल आदिक संघबाने अने देखवा ने काम आवे । इम इज किमाइ-जड़वा अनें उघाड़वा रे काम आवै छै । ते माटे साधु ने किमाड मने करी पिण जड़णो. उघाड़णो. न वान्छणो। तो किमाड़ जड़े तथा उघाड़े तेहनें साधु किम कहिये। डाहा हुये तो विचारि जोइजो।
इति १ बोल सम्पूर्ण ।