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कपाटाऽधिकारः।
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... तथा वलो आवश्यक अ० ४ गोचरिया नी पाटी में कयो। ते पाठ लिखिये छ।
पडिकमामि गोचर चरियाए भिक्खायरियाए उघाड कमाड उघाडणाए।
- (आवश्यक सूत्र मा० ४) ५० प्रति क्रमण करूं ढूं. गो गौ जिम स्थाने २ घास चरे छै तिम हिज स्याने स्थाने जे भिक्षा ग्रहण किये तिण ने गोचरी कहीइ ते गोचरी में विषे दोष हुई ते उ० थोड़ो उघाड़ो विशेष उघाड़ो किमाड़ ने पिण न हुई तेहनों उघाड़वो ते अजयणा तेहथी प्रतिक्रमूं छु।
अथ अठे कह्यो। थोड़ो उघाडणो पिण किमाउ घणो उघाड्यो हुवे तेहनों पिण "मिच्छामि दुकडं” देवे तो पूरो जडणो उघाडणो किहां थकी। साधु थई ने रात्रि में अनेक वार किमाड़ जड़े उघाड़े, अ दिन रा पिण आहारादिक करा किमाड़ जड़े उघाड़े तिण में केइएक तो दोष श्रद्ध, अनें केइ एक दोष श्रद्ध नहीं। एहवो अन्धारो वेष में छै। तथा गृहस्थ किमाइ उघाड़ी ने आहारादिक वहिरावे तो जद तो दोष श्रद्ध, अने हाथां तूं जड़े उघाड़े जद दोष न जाणे । जिम कोई मूर्ख भङ्गी अर्थात् चाण्डाल रा घरनी रोटी तो खावे, पिण भङ्गी री दीधी रोटी न खावे । तिम हिज बाल भज्ञानी पोते किमाड़ जड़े. खोले , अने गृहस्थ खोली ने पहिरावे तो दोष श्रद्ध । ते पिण तेहवा मूर्ख जाणवा । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २ बोल सम्पूर्ण ।
तथा सूयगडङ्ग में एहवी गाथा कही छै । ते लिखिये छ। णो पिरणाव पंगुणे दारं सुन्न घरस्स संजए। पुटेण उदाहरे वायं ण समुत्थे खो संथरे तणं ॥....
- (सूयगडाङ्ग)
मो० किणहिक कोरणे साधु. सूने घर रह्यो ते घर नों वारणो ढाकै नहीं. यो० किमाइ उघाड़े पिण नहीं. दा. वारणो पिण सूना घर नों न उघाड़े. किणहिक धर्म पूजयो अथवा मार्गा
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