Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 504
________________ अल्पपाप बहु निर्जराऽअधिकार: । श्रावक किम वहिराबे अथ इहां श्रावकां रा गुण वर्णन में प्राशुक. एषणीक, नों देवो कह्यो । तो जाणी ने अप्राशुक ते सचित्त असूझतो आहार साधु ने तथा भगवती श० २ उ० ५ तुंगिया नगरी ना श्रावक पिण णीक. आहार वहिरावे इम कह्यो । तथा राय प्रसेणी में साधु ने प्राशुक. एषणीक आहार प्रतिलाभतो विचरे जाणी ने असूझतो आहार साधु ने किम विहरावे । जोइजो । इति ४ बोल सम्पूर्ण । साधु ने प्राशुक. एषप्रदेशी पिण तो श्रावक चित्त अनें डाहा हुए तो विचारि इम को ४४७ तथा उपासक दशा अ० १ आनन्द श्रावक कह्यो । ते पाठ लिखिये छै । कप्पड़ मे समणे निग्गंथे फासुए एसणिज्जेणं असणं पायां खाडिमं सादिमेणं वत्थ परिग्गह कंबल पाय पुच्छरणं पीढ फलक सेना संथारएणं उस भेसजेणं पडिला भेमाणस्स विहरित तिकट्टु इमं एयारूवं अभिग्गह अभिगिरिहत्ता परिणाइ पुच्छति । ( उपाशक दशा उ० १ ) क० कल्पे. मे० मुझ में, ० श्रमण ने नि० निर्ग्रन्थ ने फा० प्राशुक. ए० एषणीक. अशन. पान. खादिम. स्वादिम. व० वस्त्र परिग्रह. कं० कम्बल. पा० पाय पूंछणो. पो० पोढ़ फलक शय्या. सन्धारो. ऊ० औषध भे० भेषज, प० दान देतो थको वि० विचरूं. ति० इम करी ने . इ० एहवो. अ० अभिग्रह ग्रह्मो ग्रही ने प्रश्न पूछे है. अथ इहां आनन्द श्रावक कह्यो । कल्पे मुझ ने श्रमण निन्थ ने प्राशुक. एषणीक अशनादिक देवो । तो अप्राशुक अनेषणीक जाण नें साधु देवे ते श्रावक ने किम कल्पे । इत्यादिक ठाम २ सूत्र में साधु में प्राशुक. एषणीक. ने

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