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भ्रम विध्वंसनम् ।
पिण निरवद्य वचन में दोष श्रद्ध नहीं । ते निरवद्य वाणी वचन मात्र कहो - भावे छन्द जोड़ी राग सहित कहो ते राग में दोष नहीं। प्रथम तो समवायाङ्ग ३५ समवाय नी टीकामें तीर्थङ्कर वाणी राग सहित कही, ग्राम युक्त कही - ते टीका लिखिये हैं
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उपनीत रागत्वं मालवा केशिक्यादि ग्रामण्य युक्तता
अथ इहां राग सहित मालवा केशिक्यादि ग्राम सहित तीर्थङ्कर नी वाणी मी सातमो अतिशय कह्यो ते माटे निरवद्य वाणी राग सहित गाया दोष नहीं १ तथा ठाणाङ्ग ठा० ४ च्यार काव्य कह्या गद्य, पद्य. कथ्य. गेय. इहां पिण गेय कहितां गावा योग्य कह्यो २ | तथा उत्तराध्ययन अ० १३ गा० १२ कह्यो– मुनीश्वर गाथाई करी धर्म देशना दीधी एहवूं कह्यो । ते गाथा कहिवे जोड़ अर्ने राग बेहूं आवे तिहां टीका में "गावे ते गाथा इम कह्यो ३ । तथा नन्दी सूत्र में सूत्र नी नेश्राय बिना बुद्धि फेलावे ते मतिज्ञान रो भेद कह्यो । तथा अणदीठ्यो अणसांभल्यो जबाब तत्काल उपजावी देवे ते औत्पासिकी बुद्धि मतिज्ञान रो भेद कह्यो ४ । तथा उत्तराध्ययन अ० २६ वो० २२ अर्थ में कवि पणो करी मार्ग दीपावणो कह्यो ५ । तथा नन्दी सूत्र मैं कह्यो - महावीर रा साधु रा १४ हजार पइन्ना कीधा । तथा अनेरा तीर्थङ्कर राजेतला साधु थया त्याँ पोता नी ४ बुद्धिई करी तेतला पइन्ना कीधा ६ । farmeat fur कीधा ग्रन्थ सम्यग्दृष्टि रे समश्रुत कह्या तो साधु पोते जोड़े तेहने मिथ्या श्रुत किम कहिये । तथा गणधरे पिण सूत्र नी जोड़ कीधी तेहमें छन्द काव्यादिक राग सहित छै ८ । इत्यादिक अनेक ठिकाणे जोड़ अने राग सहित 'बाणी निरवद्य कही छै । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
तथा
इति ६ बोल सम्पूर्ण ।
इति कविता ऽधिकारः ।