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यावृत्ति-अधिकारः।
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तेहनों उत्तर-इहां कयो, अर्श छेदे ते वैद्य ने किया लागे, पिण धर्मान्तराय साधु रे पड़ी। धर्मान्तराय ते धर्म में विघ्न पड्यो तो जे साधु रे धर्मान्तराय पाडे तेहनें शुभ क्रिया किम हुने। ए धर्मान्तराय पाड्यां तो पुण्य बंधे नहीं। धर्मान्तराख पाड्यां तो पाप नी क्रिया लागे छै। ए तो पाधरो न्याय छै। एक तो जिन आता बिना कार्य कियो बीजो साधुरी अकल्पती व्यावव करी. ते माटे साधु रा त्याग मंगावण रो कामी कही जे। तीजो साधु रे धर्म ध्यान में अन्तराय पाड़ी। तीन कार्य किया तो पुण्य री क्रिया बंधे नहीं। पुण्य री करणी तो भाशा माहि है। निरवद्य कही छै। ते निरवध करणी तो साधु कहिने करावे छै। ते करणी री साधु अनुमोदना फरे छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति १० बोल सम्पूर्ण।
पली ए अर्श तो साधु गृहस्थी तथा अन्यतीथीं पासे छेदावे नहीं । छेदता में अनुनोदे नहीं। जे साधू अर्श छेदावे छेदवता ने अनुमोदे तो प्रायश्चित्त करो है। ते पाठ लिखिये छ।
जेसिकाबू अण्णा उत्थिएणवा गारथिएणवा अप्पाणो कायंसि गड़वा पलियंका अरियंवा असियंवा भगंदलं वा अण्णयरेण वा तिवखेण सस्थ जाएण आच्छिंदेह विछिंदेह आछिदंतं वा विछिदंतं वा साइजइ, ॥३१॥
(निशीथ उ० १५ ग्रो० ३१) .
* जे कोई. भि. साधु, साध्वी, १० अन्य तीर्थी. का गा गृहस्थी. पासे अापणी क्षवा ने दिपे. गं० गंड मालादिक पं० मेलियादिक. अ० गूमो बा. १० अर्श ते पावन आम ना, भगदर रोग. वा अ० अनेरो शेग. ति शास्त्र नी ज्ञाति तथा प्रकार ना तीक्ष्ण की.' बार अथवा थोड़ो सोई छेदवे वि. विशेषे वा छेड्ने तथा घयो छेदावे, श्रा० एक बार छेदता में. वि० वारवार छेड़ता ने अनुमोदे,