Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner
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४३६
भ्रमविध्वंसनम् ।
अथ इहां मतिज्ञान ना बे भेद किया। श्रुत निश्चित. अश्रुत निश्चित. तिहां जे सूत्र बिना ही ४ बुद्धिई करी सूत्र सूं मिलतो अर्थ ग्रहण करे । सूत्र बिना ही बुद्धि फैलावे। ते अश्रुत निश्चित मतिज्ञान नो भेद कह्यो छै। वली कह्यो-पूर्वे दीठो नहीं सुण्यो नहीं ते अर्थ तत्काल प्रहण करे ते उत्पात नी बुद्धि अश्रुत निश्चित मतिज्ञान नों भेद कह्यो। सो जोड़ सूत्र सूं मिलती करे ते तो उत्पात नी बुद्धि छै। अश्रुत निश्चित भेद में छै। तो ते जोड़ ने खोटी किम कहिये। तथा “सम्मदिहिस्सभइमइ नाणं” ए पिण मन्दी सूत्रे कह्यो। समदृष्टि नी मति में मति. शाम कहो तो जे साधु मतिज्ञान थी बिचारी निरवध जोड़ करे तेहनें दोष किम कहिये । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति २ बोल सम्पूर्ण ।
तथा वलो नन्दी सूत्र में कह्यो। ते पाठ लिखिये छ ।
से किं तं मिच्छ सुयं, मिच्छ सुयं जं इमं अण्णाणि एहिं मिच्छ दिदि एहिं. सच्छंद बुद्धि मइ बिग्गप्पियं तं जहा भारहं रामायणं, भीमा. सुरूवखं. कोडिल्लयं. सगडं भद्दियाओ. सभगंदियाओ. खंडामुहं. कप्पासियं. नाम सुहुमं कणगसत्तरी वइसासियं बुद्ध वयणं तेसियं वेसियं लोगाययं सटूितं तं माठरं पुराणं वागरणं भागवयं पायपुंजलो पुस्स देवयं लेहं गणियं सउण रूयं नडयाई अहवा बावत्तरिं कलाओ चत्तारिवेया संगो वंगाए याई मिच्छदिद्विस्स मिच्छत्त परिग्गहियाइ. मिच्छसुयं एयाईचेव. सम्मदिटुस्स सम्मत्त परिगाहिया सम्मदिट्टी सम्मसुयं ।
( नन्दी सूत्र )

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