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भ्रम विध्वंसनम् ।
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___अथ इहां ४ प्रकार ना काव्य कहा। गद्य वन्ध. पद्यवन्ध. कथा करी. गायो करो. ए ४ निरवध काव्य करी मार्ग दिपायां दोष नहीं। तथा भगवान् रा ३५ वचन रा अतिशय में राग सहित तीर्थकर नी वाणी कही छै । अनें गायां दोष छे तो सूत्रादिक नो गाथा काव्य में राग छै। ते माटे ए पिण कहिणी नहीं। अनें जो खुन नी गाथा काव्यादिक राग सहित गायां दोष नहीं तो और निरबद्य वाणी पिण राग सहित गावां दोप नहीं। हे देवानुप्रिया ! एहवा कोमल आमन्त्रण में दोष नहीं। तिज राग में विण दोष नहीं उत्तम जीव विचारि जोइजो । केतला एक कहे च्यार काव्य समचे कशा पिण साधु ने आदरया एहवो:न व हो। इम कहे तेहनों उत्तर-ए च्यार कायनों एहबो अर्थ कियो छै। “गद्दे कहितां गद्य ते छन्द विना “शास्त्र परिज्ञाध्ययन" नी परे । “पद” कहितां पय ते पद करि वांध्यो ते गाथा वन्ध “ विमुक्त अध्ययन" नी परे । “कत्ये” कहितां साधु नी कथा "ज्ञाताध्ययन" नी परे । “गेर" कहितां गावा योग्य, एहबूं अर्थ कियो छै।.ते माटे च्यारू निरवद्य काव्य साधु ने आदरया योग्य छ । तिवारे कोई:कहे ए “गद्द. पद्दे. कत्थे.” तो आदरवा योग्य छै। पिण "गे" आदरवा योग्य नहीं । इम कहे तेहनों उत्तरए गद्य. पद्य. बे काव्य ने अनाभूत कथा. अने गेय कह्या छै। विशिष्ट धर्म माटे जुदा कह्या जणाय छै। मिण गद्य पद्य ने अन्तर इज छै। तिहां टीकाकार पिण इम कह्यो ते टीका लिखिये छै।
''काव्यं ग्रन्थः-गद्य मच्छन्दोनिवद्धं. शास्त्रपरिज्ञाध्ययन वत् । पद्यं छन्दो निवद्धं. विमुक्ताध्ययनवत् कथायां साधु कथ्यं. झाताध्ययनादिवत् । गेयं गान योग्यम् । इह गद्य पद्यान्तर भावे पि कथा. गानयोधर्म विशिष्टतया विशेषो विवक्षितः"
___ इहां टीका में “कत्थे-गेर" ए गद्य पद्य ने अन्तर कह्या। अने गद्य ते शस्त्र परिज्ञाध्ययन नी परे। पद्य ते विमुक्ताध्ययन नी पर कह्या छै। ते माटे "कत्थे गेए” पिण निरवद्य आदरवा योग्य छै। तिवारे कोई कहे ए तो च्यारू काव्य सूत्र नी भाषाई कह्या छै। ते माटे “गेए” पिण सूत्र नी भाषांई कहिचूं। पिण अनेरी भाषाई ढाल रूप राग कहियो न थी। इम कहे तेहनों उत्तर- जे गेय अनेरी भाषाई कहि नहीं तो गद्य, पद्य. कथा. पिण अनेरी