Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 496
________________ कविताऽधिकार। - - भाषाई कहिवी नहिं । जे सूत्र नो अर्थ छन्द विना कहिवो तेहने गद्य कहिइ। तो तेहने लेखे अर्थ पिण कहिवो नथी। तथा सूत्र ना अर्थ किणहि छन्द रूप भाषाई रच्या ते पद्य कहिई तो तेहने लेखे वे निरवद्य पद्य पिण कहिया नथी। तथा अनेरी नन्दी सूत्र नी कथा तथा ज्ञातादिक में ए जो साधु नी कथा ते पिण पाठ थी कहिणी पिण अनेरी भाषाई कथा रूप कहिणी नथी। जे अनेरी भाषाई “गेए" कहिणी नथीं । तो अनेरी भाषाई गद्य. पद्य. कथा. पिण कहिणी न थी। अने जो सूत्र नो भाषा थी अनेरी भाषाई गद्य पद्य शुद्ध कथा कहिणो तो अनेरी भाषाई पिण गावा योग्य निरवद्य कहिलूं। इहां गद्य ते शास्त्रपरिज्ञाध्ययन नी परे कह्या छै। ते भणी शास्त्र परिज्ञा ध्ययन पिण गद्य छै, अने तेहनी परे ह्यां माटे अनेरी भाषाई निरवद्य छन्द विना सर्व गद्य में आयो, पद्य ते विमुक्त अध्ययन नी परे कह्यां माटे विमुक्त अध्ययन पिण पद्य में आयो । अन तेहनी परे कह्या माटे ते अनेरी छन्द रूप भाषा में पद्य में निरवद्य जोड़ पिण पद्य में कहिये। अनें कथा. गेय. ए घे भेद छै ते कथा तो गद्य में अनें गेय ते पद्य में. इस कथा. गेय. ए बेहूं गध. पद्य. में आवे। ते माटे सूत्र नी भाषाई तथा सूत्र विना अनेरो भाषाई गद्य. पद्य. कथा. गेय कह्यां दोष नहीं। सावध गद्य. पद्य. कथा. गेय. कहिणा नहीं। अने जे सूत्र विना अनेरो भाषाई गद्य. पद्य, कथा. गेय. न कहिवा, तो नन्दी सूत्र में मतिज्ञान ना वे भेद क्यूं कह्या। श्रुत निश्चित. अनें अश्रुत निश्चित. ए वे भेद किया है। तिहां जे श्रुत निश्चित विना बुद्धि फैलावे ते मतिज्ञान रो अश्रुत निश्चित भेद कह्यो छै। ते पिण साधु ने आदरबा योग्य कह्यो छै। तथा अश्रुत निश्चित ना ४ भेदां में ओत्पातिक बुद्धि जे अणदीठो. अणसांभल्यो. तत्काल मन थी उपजावी शुद्ध जवाव देवे, ते पिण मतिज्ञान रो भेद श्रुत निश्चित विना कह्यो छै। ए पिण साधु में आदरवा योग्य छै। ते माटे सूत्र नी भाषा थी अनेरी भाषाई पिण गद्य. पद्य. कथा. गेय. कह्यां दोष न थी। ते माटे अनेरी भाषाई गेय ते गायवा योग्य ते शुद्ध आदरवा योग्य छै। डाहा हुए तो विचारि जोइजो। इति ४ बोल संपूर्ण। तथा उत्तराध्ययन कह्यो ते पाठ लिखिये छै।

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