________________
भ्रम विध्वंसनम् ।
रन्तर अतिशय सूं तिगिच्छा धर्म ना फल नों संदेह तिणे रहित. ल० लाधा छै सूत्र ना अर्थ वार वार सांभलवा थकी. ग्र० ग्रहण बुद्धिई ग्रह्या छै मन में विषे धारया है. पु० पूछा छं अर्थ संशय ऊपने. वार २ पूछवा थकी. अ० वार २ पूछयां थकां अतिशय सू पाम्या अर्थ निर्णय करो धारया श्र० जेहनी अस्थि मीजी पिण प्रमानुराग रक्त छै. धर्म में विषे.
अथ इहां कह्यो–अर्थ लाधा छै. अर्थ ग्रह्या छै. अर्थ पूछया छै. अर्थ जाण्या छै. इहां श्रावका ने अर्था रा जाण कह्या। पिण इम न कह्यो “लद्धासुत्ता" जे लाधा भण्या छै सूत्र इम न कह्यो ते माटे सिद्धान्त भणवा नी आज्ञा साधु ने इज छै। पिण श्रावक ने नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ६ बोल सम्पूर्ण।
तथा वली सूयगडाङ्ग में श्रावका रे अधिकारे एहवो कह्यो ते पाठ लिखिये छै।
इणमं निग्गंथे पावयणे निस्सेकिया णिक्कंखिया निवितिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छिट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगगयट्ठा अट्ठिमिंज पेमाणु रागरत्ता।
( सूथगडांग अ०१८।
इ० एह नि० निग्रन्थ श्री भगवन्त नों भाष्यो. पा. श्री जिन धर्म जिन शासन ना भाव भेद ने विरे. नि शंका रहित. ही निरन्तर अतिशय सूं कांक्षा अनेरा धर्म नी बांछा रहित. गि निरन्तर अतिशय सूं तिपिच्छा धर्म ना फल नों संदेह तिणे रहित, ल० लाधा छै सूत्र ना अर्थ वार वार सांभलवा थकी. ग० ग्रहण बुद्धिई ग्रहा है. मन में विष धारया छै. पु० पूछा छै अर्थ संशय ऊपने. वार २ पूछवा थकी. अ० वार २ पूछयां थकां अतिशय सू पाम्या अर्थ निर्णय करी धारशा अः जेहनी अस्थि मीजी पिण प्रेमानुराग रक्त छ. धन में विषे.