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निरवद्य क्रियाधिकारः ।
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लाभंतराएणं. भोगंतराएणं. उवभोगंतराएणं. बीरियंत राएणं. अन्तराइय कम्मा सरीरपयोग सामाए कम्मस्स उदएं अन्तराइय कम्मा सरीरप्पोग बंधे ॥ ४४ ॥
( भगवती श० ८ उ० ६ )
कर्म शरीर प्रयोग करी
हिवें कार्मण्य शरीर प्रयोग बन्ध अधिकारे करो कहे. क० कार्मगय शरीर प्रयोगबन्ध म० भगवन्त ! केतला प्रकारे प० परूप्यो. गो० हे गौतम! अ० आठ प्रकारे कह्यो । ना० ज्ञानावरणीय कर्म. शरीर प्रयोग बंधे जाव० यावत् श्र० अन्तराय बांधे उपाजें । णा० ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंधे भ० भगवन् ! क० कुण कर्म ना उदय श्री. गो० हे गौतम! या० ज्ञान तथा ज्ञानवन्त सूत्र प्रतिकूल तिखे करी ज्ञान मों गोपवो ते दिवो णा० ज्ञान भगतो होय तेहने अंतराय करे तथा ज्ञानवन्त सूं द्वेष करे. ज्ञान तथा ज्ञानवंत नी असातना करी ने पा० ज्ञान तथा ज्ञानवंत ना. वि० अववाद तेणे करी ने. ज्ञानावरणीय कर्म शरीर प्रयोगबन्ध नाम कर्म ने उदय करी. गा० ज्ञानावरणीय २ कर्म शरीर प्रयोग बंधे । द० दर्शना वरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंधे. भ० हे भगवन्त ! कुण कर्म ने उदय करी. गो० हे गोतम ! द० दर्शन ते द० ज्ञाना वरणी नी परे जाणवो। न० एतलो विशेष द० दर्शन एहवो नाम की ने जाणवो. जा० यात्रत् ज्ञाना वरणी नी परे. द० दर्शन ना. वि० विसम्बाद योगेकरी द० दर्शना वरणीय कर्म शरीर प्रयोग बंधे ॥३८॥ सा० साता वेदनी कर्म बंधे शरीर प्रयोग बंधे. भ० भगवन्त ! गोतम ! पा० प्राणी नी अनुकम्पा करी. भु० भूत नी दया करी. ए० इम जिम सातमे शतके दुःसम नामा छठे उद्देश्ये कह्यो तिम जावो. जा० यावत्. अ० परितापे करो में सा० साता वेदनी कर्म शरीर प्रयोग कर्म ना उदय थी सा० सातावेदनी कर्म. जा० यावत् वं० बंधे । अ० असाता वेदनी कर्म नी पृच्छा प० पर दुःख पमड़ावे करो. प० पर ने शोक पमाड़वे करी. ज० जिम सातमे शतके दशम उद्देश्ये को तिमज जाणवो. जा० यावत् पर नें परिताप उपजावे तिवारे. अ० असाता बेदनी कर्म नो यावत प्रयोग बंध हुवे ॥ ३६ ॥ मो० मोह नी कर्म शरीर प्रयोग नी पृच्छा गा० हे गोतम ! ति० ती लाभे करी. ति० तीब्र दर्शन मोहनीय करी. ति० लोब चारित्र मोहनी. अनें नौ कषाय नों लक्षण इहां चारित्र मोहनी कर्म शरीर प्रयोग बन्ध होय. ॥४०॥ ने० नारकी नों श्रायुषो कर्म शरीर प्रयोग बन्ध किम' होय. पृच्छा. गो० हे गोतम ! म० महा शारम्भ कर्मादिक करी. म० महापरिग्रहवन्त तृष्णा तेथे करी. पं० पंचेन्द्रिय नी घातकरी ने . कु० मांस न भक्षण करखे करो. ने० नारकी न श्रायुषो कर्म शरीर प्रयोग बन्ध नाम कर्म नें उदय करी नारकी नों आयु कर्म शरीर प्रयोग ध होय । ति० तिर्यञ्च योनि मर्म शरीर नी. पृच्छा. गो० हे गोतम ! मा०
कुण कर्म नें उदय थी. गो० हे
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