Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 483
________________ ४२६ भ्रम विध्वंसनम् । इहां एकलो कह्यो ते एकल पडिमा धारवा नी भावना भावे इम कह्यो ते एकल पडिमा तो जघन्य नवमा पूर्व नी तीजी:वत्थु ना जाण ने कल्पे । इम ठाणाङ्ग ठा० ८ को छै ते पूर्व नों ज्ञान अनें एकल पडिमा बेहु हिवड़ा नथी । अने पूर्व नों ज्ञान विच्छेद अनें पूर्व ना जाण बिना एकल पडिमा पिण विच्छेद छै। ए साधु ना ३ मनोरथ में प्रथम मनोरथ इम कह्यो। जे किवारे हूं थोड़ो घणो सूत्र भणसूं । दूजो मनोरथ जे किवारे हूं एकल पडिमा अङ्गीकार करस्यूं। तीजो मनोरथ किवारे हूं सन्थारो करस्यूं। इहां प्रथम तो सिद्धान्त भणवा नी भावना भावे ते पिण मर्यादा व्यवहार सूत्रे कही ते रीते भणे पिण मर्यादा लोपी न भणे अनें मर्यादा सहित सूत्र भणी ने पछे दूजो मनोरथ एकल विहार पडिमा नी भावना कही। ते पिण ठाणाङ्ग ठा० ८ कही ते प्रमाणे पूर्व भणी ने एकल पडिमा पिण अङ्गीकार करे। जिम सूत्र भणवा नों मनोरथ कह्यो। पिण १० वर्ष दीक्षा पाल्यां पछे भगवती सूत्र भणवो कल्पे पहिलां न कल्पे। इम अन्य सूत्र पिण मर्यादा प्रमाणे भणवो कल्पे। तिम एकल पडिमा रो मनोरथ कह्यो। ते एकल पडिमा पिण नवमा पूर्व नी तीजी वत्थु भण्या पछे कल्पे पहिलां न कल्पे। इम हिज आचारांग में पिण नवमा पूर्व नी तीजी वत्थु भण्या विना एकल पडिमा न कल्पे कह्यो। ते माटे ३ मनोरथ रो नाम लेइ एकल पडिमा थापे ते पिण न मिले जिम सूत्र भणवा ना मनो. रथ नो नाम लेइ १० वर्ष पहिलां भगवती भणवो थापे तो न मिले तिम नवमा पूर्व नी तीजी वत्थु भणवा विना एकल पडिमा थापे ते पिण न मिले। तथा कोई कहे दश वैकालिक अ. ४ कह्यो। “से भिक्खू वा भिक्खुणीवा जाव एगोवा परिसागओवा" इहाँ साधु ने एकलो क्यूं कह्यो, इम कहे तेहनों उत्तर-इहां साधु ने साध्वी ने बेहं ने एकला कह्या छै। "भिक्खूवा भिक्खुणीवा" ए पाठ कह्यां माटे जो इम छै तो साध्वी एकली किम रहे। वली “एगोवा परिसागओवा' कह्यो है। परिषदा में रह्यो थको तथा परिषदा ने अभावे एकलो रह्यो थको इहां साधु साध्वी ने परिषदा ने अभावे एकला कह्या छै। पिण एकल पणो विचरवो पाठ में कयो नथी। तिवारे कोई कहे और साधु मरतां २ एकलो रहि जाय तिण में साधु पणो हुवे के नहीं। तथा और भागल हुवे ते माहि थी कोई न्यारो थइ साधु पणो पाले तिण ने साधु किम न कहिए। इम कहे तेहनों उत्तर जिम मरतां २ साध्वी एकली रहे तो :स्यूं करे तथा घणा भागल माहि थी एकली साध्वी न्यारी हुवे तेहनें साधु पणो निपजे के नहीं। इम पूछयां जवाब

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