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उच्चार पासवणाऽधिकारः ।
जे० जे कोई. भि० साधु साध्वी. उ० बड़ी नीति पा० लघु नीति प० परठी (करी) नें ० शुचि न लेवे अथवा णा० शुचि न लेतां नें अनुमोदे तो पूर्ववत् प्रायश्चित्त ॥ १६३॥ जे० जे कोई. भि० साधु साध्वी. उ० बड़ी नीति पा० छोटी नीति प० परठी नें. त० तठेई (तिया ऊपरेइज) आ० शुचिलेवे. वा. ० शुचि लेता ने अनुमोदे तो पूर्ववत् प्राय - श्चित्त ॥ १६४ ॥
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जे जे कोई साधु साध्वी. उ० बड़ी नीति पा० लघु नीति प० परठी नें. अ० प्रति दूरे to शुचि लेवे अथवा अतिदूरे शुचि लेतां नें अनुमोदे तो पूर्ववत् प्रायश्चित्त ॥ १६५ ॥
अथ इहां कह्यो – उच्चार पासवण परठी ( करी ) नें शुचि न लेवे, अथवा तठे ई उच्चार रे ऊपर इज शुचि लेवे अथवा अति दूर जाई नें शुचि लेवे तो प्रायचित्त आवे । ते पिण उच्चार आश्री शुचि लेणों कह्यो । पासवण तो पोते शुचि छै तेही शुचि कांई लेवे । इहां उच्चार पासवण परठगो नाम करवा नो छै । जिम दिशा जाय नें शुचि न लेवे तो दण्ड कह्यो, तिम गृहस्थ देखतां दिशा जाय तो दण्ड जाणवो । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ३ बोल सम्पूर्ण ।
तथा निशीथ उ० ३ कह्यो । ते पाठ लिखिये छै ।
जे भिक्खू सपायंसि वा परपायंसि वा दियावा. ओवा. वियाले वा उच्चाहिमाणे सपायं गहाय जाइत्ता उच्चार पासवणं परिवेत्ता अगुग्गए सूरिए एडेइ. एडतं वा.. साइजइ ॥८२॥ तं सेवमाणे आबज्जइ मासियं परिहार होणं प्रोग्घाइयं ॥
(निशोथ उ० ३ )
to जे कोई साधु साध्वी में. स० आपणा पाना ते पानिया ने विषे. प० अन्य साधु ना पात्रा ने विषे. दि० दिन में विषे, रा० रात्रि में विषे. वि० विकाल नें विषे उ० प्रवल यो वला