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एकाfhary - अधिकारः ।
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उत्तम
देवा असमर्थ जद अकबक बोले पिण अन्यायी हुवे ते लीधी टेक छोड़े नहीं जे कारण पढ्यां एकल पणे रहे तो जिम पोता नों संयम पले तिम करे । जीव हुवे ते थोड़ा दिन में आत्मा नों कार्य सवारे पिण किञ्चित् दोष लगावे नहीं । तिवारे कोई कहे - कारण पड्यां तो एकला में पिण साधु पणो पावे छै तो एकल रहे ते भ्रष्ट पहवी परूपणा किम करो छो । इम कहे तेहनों उत्तर गृहस्थ
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घरे वैसे तेहनें भ्रष्ट कहीजे । मास चौमास उपरान्त रहे तिण नें भ्रष्ट कहीजें । पहिला प्रहर से आयो आहार छेहले प्रहर भोगवे तेहनें पिण भ्रष्ट कहीजे । मर्दन करे तेहनें पिण भ्रष्ट कहीजे । इत्यादिक अनेक दोष सेवे तिण नें भ्रष्ट कह्यो । अनें कारण पड्या पाछे कह्या ते बोल सेवणा कह्या तिण में दोष नहीं तो पिण धोक मार्ग में परूपणा तो ए बोल न सेवण री ज करे, कारणे सेवे तो ए बोलां री थाप धोक मार्ग में नहीं। धोक मार्ग में तो ते बोल सेव्यां दोष इज कहे। कारण री पूछे जब कारण रो जबाव देवे मर्दन कियां अनाचारी दशवैकालिक में कह्यो । अनें बृहत्कल्प में कारणे मर्दन करणो कह्यो । ते तो बात न्यारी, पिण मर्दन कियां अनाचारी ए परूपणा तो विगटे नहीं तिम सकल पणे विचरे तिण में भ्रष्ट कहीजे । ए धोक मार्ग में परूपणा छै । अनें कारण में एकल पणे रह्यां ते परूपणा उठे नहीं । ऐकली साध्वी विचरे तिण नें भ्रष्ट कहीजे । एकली गोचरी तथा दिशा जाय ते पिण भ्रष्ट. एकलो साधु स्थानक : बाहिरे रात्रि दिशा जाय ते पिण भ्रष्ट कहीजे । अर्ने कारणे सर्व एकल पणे संयम निर्वहे तो धोक मार्ग में तेहनी थाप नहीं । ते मा परूपणा में दोष नहीं । तिम एकल नें धोक मार्ग में भ्रष्ट कहीजे । अनें कारण री बात न्यारी छै । कारण पड्यां भगवन्त कह्यो ते प्रमाणे बिचलां दोष नहीं । अनें केतला एक एकल अपछन्दा कहे छै ते साधु एकल बिचलां दोष नहीं । एहवी परूपणा करे छै ते सिद्धान्त ना अजाण छै । सिद्धान्त में तो एकल पणे विचरवो घणे ठामे बर्ज्या छै । प्रथम तो व्यवहार उ० ६ घणा निकाल पैसारे हुवे ते प्रामादिक में एकला बहुश्रुति नें रहिवो न कल्पे कह्यो । तथा आचारांग श्रु० १ अ० ५ उ० १ एकला में आठ अवगुण कह्या । तथा आचाराङ्ग श्रु० १ अ०५ उ०४
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