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एकाकिसाध्वऽधिकारः।
तिवारे कोई कहे--ए तो एक जगां स्थानक ना घणा निकाल पैसार हुवे तिहां ए रहिवो बो छै। तेहनों उत्तर-जे प्रामादिक ना घणा निकाल पैसार हुवे तिहां “अगड़सुया" साधु ने रहिवो न कल्पे । तिहां पिण एहवो इज कह्यो छै। वे पाठ लिखिये छै।
से गामंसिवा जाव सन्निवेसंसिवा. अभिण्णिवगडाए अभिनिदुवाराए. अभिनिक्खमण प्पवेसणाए नोकप्पति बहुणं अगड सुयाणं एगयोवत्थए ॥१३॥
(न्यवहार उ०६)
से० ते ग्राम में विफे. जा. यावत. स. सन्निवेश सराय प्रमुख ने विषे. अ० प्रत्येक २ जुदा २ कोटादिक होइ जुदा २ परिक्षेत्र हुई स्थापना घणा निकलवा ना मार्ग है. घणा पेसवा मार्ग छै तिहाँ. नो० न कल्पे. घणा अगीतार्थ में एकला रहिवो.
___ अथ इहां पिण प्रामादिक ना घणा दरबाजा हुवे, तिहां घणा अगड़सुया ते निशीथ ना अजाण तेहनें न कल्पे, इम कह्यो। तो तेहने लेखे ए पिण एक जगां घणा बारणा कहिवा । अनें जो प्रामादिक ना घणा वारणा छै। तिण प्रामादिक में अगडया ने न कल्पे तो तिहाँ एकला बहुश्रुति ने पिण बर्यो छै। ते माटे ते प्रामादिक ना घणा वारणा छै ते प्रामादिक में बहुश्रुति ने एकलो रहिवो नहीं। एक निकाल ते प्रामादिक में पिण अगडसुया न बज्यों छै। अनें बहुश्रुति एकला में अहोरात्र सावधान पणे रहिवू कह्यो छै। ते प्रामादिक आश्री छै। पिण स्थान पाश्री नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति २ बोल सम्पूर्ण ।
तथा वृहत्कल्प उ.१ कह्यो-जे प्रामादिक ना एक निकाल तिहां साधु साध्वी ने एकठा न रहिवा। अनें घणा वारणा तिहां रहिवो कह्यो। ते पाठ लिखिये छै