Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 470
________________ एकाकिसाध्वधिकारः। ४१३ चरिया भवति । से बहु कोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोहेबहुरए बहुननेड बहुसढे बहुसंकप्पे आसव सकी पलिओछन्ने उट्ठिय वायं पवयमाणे “मा मेकेइ अदक्खू” अन्नाण पमाय दोसेणं सततं मूढे धम्मं णाभिजाणाति ॥६॥ अट्ठापया माणव कम्मकोविया जे अणुवर या अविजाए पलिमोक्खमाहु अवदृमेव मणुपरियति त्तिवेमि। (आचाराङ्ग श्रु० १ ० ५ उ०१) पा० देखो. ए० केतलाक. रू० रूप में विषे बृद्ध. प० परिणमता थका. ए० इहां. फ० स्पर्श पु० वारम्वार. प्रा० जेतला. के० ते माहि थकी केइ. लो० लोक मनुष्य लोक ने विषे. प्रा. सावद्य अनुष्ठाने करी. जी० आजीविका करे ते दुःख भोगवे. एतले गृहस्थ देखाड्या वली अनेरा ने देखाडे छै. ए० ए सावद्य प्रारम्भ ने विषे प्रवर्त्तता गृहस्थ तेहने विषे शरीर निर्बाह ने काजे प्रवततो. अनय तीर्थी तथा पासत्यादिक द्रव्य लिंगी थई प्रारम्भ जीवी थाइ'. सावद्य अनुठाने वर्ते ते पिण एहवा दुःख पामे तथा. गृहस्थ पिण वेगला रहो. तीर्थक भने दर्शनी ते पिण वेगला रहो जे संसार समुद्र ने तीर सम्यक्त्व पामी वीर परिणाम लही कर्म ने उदय ते पिण सावद्य अनुष्ठान ने विषे प्रवर्गे तो. अनेरा नों कियूं कहिवो इम देखाडे छै. ए. एणे अरिहन्त भाषित संयम ने विषे. वा. बाल अज्ञानी राग द्वष व्याकुल चित्त विषय तृष्णा पीड़ातो छतो. र० रमे रति करे. पा० पार कर्मे करी सावद्य अनुष्ठान ने न्यूं जागतो छतो करे. ते कहे है। अ० जे जीवां ने दुर्गति पड़तां शरण न थाइ ते अशरणक सावद्य अनुष्ठान तेहिज. स० शरण सुख , कारण. म. मानतो थको. अनेक बेदना नारकादिक ने विषे भोगवे. वली एहिज नों विशेष कहे छै. इण मनुष्य लोक ने विषे. एकएक विषय. कषाय निमित्ते. ए. एकाकी पणे भ्रमवो थाई. घणा परिवार माहि रहिता परिवार नी शंकाई विषय सेवी न सके ते भणी एकलो हीडे. स्वेच्छाचारी थाई. केहवो हुवे. ते कहे छै. से. ते विषय गृध्र एकलो भ्रमतो अकालचारी देखी लोके पराभवतो .ब० घणो क्रोध वत्ते. व० अणवांदतो मानव है। तूं किस्यूं वांदसी भुझ ने घणाई वांदे छ इम मानें वत्ते. व० तप अकरबे तप कहे. तथा रोगादिक कारण बिना इ कहि लावे घणी माया करे. ब० सर्व आहार शुद्ध अशुद्ध ने लेवे बहुलोभ एहवो छतो. व० बज्न पाप जाणवो तथा ३ घणा प्रारम्भ ने विषे रत. न० नटनी परे भोग नो अर्थी थको बहु वेष धरे. ब० घणे प्रकारे करी मूर्ख. ब० घणा मन ना अधयवसाय ने विषे वर्ते एहवो छतो हिंसादिक आश्रव ने विषे. स. आसक्त तथा. ५० कमें करी आच्छायो एहवो

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