________________
श्रम विध्वंसनम् ।
तीजी वत्थु भण्या विना गण धारवा योग न कह्यो ते माटे टोलो करणो पिणन कल्पे । इम कहे तेहमीं उत्तर- छ गुणा सहित साधु नें गण धरवो कह्यो ते "गणं गच्छं धारयितुं" ते गण गच्छ नों धारवो ते पालबो अर्थ कियो छै । तै गणं गच्छ नों स्वामी ६ गुणा रा धणी नें कह्यो । तिहां ६ गुणा में "वहुस्सुए" नो अर्थ घणा सूत्र नों जाग पहं अर्थ कियो पिण नवमा पूर्व नों नाम न थी चाल्यो । अनें ८ गुण एकला ना कहा । तिण में "बहुस्सुए" नों अर्थ नवमा पूर्व नी तीजी वस्तु कही छे । ते माटे गच्छ ना स्वामी ने नवमा पूर्व नों नियम न थी । डाहा हुए तो विचारि जोजो |
इति ६ बोल सम्पूर्ण ।
४१८
1
तिबारे कोई कहे - ६ गुणामें अने आठ गुणा में पाठ तो एक सरीखा है। अने अर्थ में ८ गुणा में तो नवमा पूर्व नों जाण ते बहुस्सए भने ६ गुणा में घण सूत्र नों जाण ते बहुस्सुए पिण पूर्व न कह्या । एहवो अर्थ में फेर क्यूं एक सरीखा पाठ नो अर्थ पिण एक सरीखो कहिणो । इम कहे तेहनों उत्तर उवाई में प्रश्न २० २१ में साधु ने अनें श्रावक ने पाठ एक सरीखा कह्या । ते पाठ लिखिये !
धम्मिया धम्माया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मपलोइ धम्म पालज्जणा धम्म समुदायरा धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा सुसीला सुधया सुपडियारांदा साहु ॥ ६४ ॥
( उचाई प्रश्न २०-२१ )
• धम श्रुत चारित्र रूप ना करणहार ध० धर्मश्रुत चारित्र रूप ने केडे चाले ६० धर्म नी चेष्टा रूडी है. ध० धर्मश्रुत. चारित्र रूप में संभलावे ते धर्मख्यात कहिव. ध० चारित्र रूप में ग्रहवा योग्य जाणी वार बार तिहां दृष्टि प्रवर्त्ताचे घ० धर्मश्रुत चारित्र
धर्म
ने बिषे प्रकर्षे सोवधान है अथवा धर्म ने रागे रंगाया है. ध० धर्म में विषे प्रमाद रहित है आचार जेनां धर्मश्रत चारित्र ने अखंड पालवे. श्रुत ने आराधवे इज वि० आजीविका