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भ्रम विध्वंसनम् ।
दुर्लभ पणो माहरे उपदेशे वर्त्ततां ते तुझ ने. मा० मा हुज्यो आगमानुसारे सदागच्छ मध्यवर्ती थाइ श्री वर्धमान स्वामी कहे छै. ए पूर्वे कह्यो ते. कु० श्री वर्द्धमान स्वामी नों दर्शन अभिप्राय जाणवो एकलो विवरे तेह ने घणा दोष. इम जाणी सदा प्राचार्य गुरु समीपे. वत्ततां ने घणा गुण कै. हिवे प्राचार्य समीपे किम प्रवर्ते ते कहे है. त० ते अचार्य गुरु ने दृष्टि अभिप्राय चाले प्रवर्ते. त० मुक्त सर्व संग विरति तेणे करी सदा यत्न करवो. एतावता लोभ रहित. त० ते प्राचार्य नों पुरस्कार सर्ब धर्मकार्य में विषे भागिल स्थापवी एहवो छते प्रवर्तवो. त० ते श्राचार्य नी. सं० संज्ञा ज्ञान तेणे वलें मतु आपणी मति प्रवर्तीवी में कार्य करवो. त० ते श्राचार्य नों स्थानक छै. जेहने एतावता गुरुकुल वासे वसिवो. तिहां वसतो केहवों थाइते कहे छै. ज० जयणाई. वि. विचरे. एतावता जीव हिसा टालतो पडिलेहणादि क्रिया करे. चि० प्राचार्य ना चित्त ने अभिप्राये वर्त्त तथा प० गुरु किहांइ पोहता हुई तेहनों पन्थ जोवे तथा शयन करवा बांछतो जाणी संथारो करे तथा क्षुधा जाणो श्राहार गवेषे. इत्यादिक गुरु नों श्राराधक थाई. ५० गुरु नी अवग्रह थकी कार्य बिना बाहिर न रहे. अवग्रह मांहि रहतां सदाइ वन्दना वेयावचादि कार्य बिना बाहिर असातना थाइ. इस्यो जाणी अवग्रह वाहिर न रहे पा० गुरु किहांइ मोकल्यो हुवे तो झूसर प्रमाणे पन्थ में विषे. पा० प्राणी जीव. पा० दृष्ट जोवतो. ग० जाइ पर विध्वंस पणे न हीडे. ईर्यासमति सू चाले. से० ते. अ० अावे. ५० जावे. स. संकोचन कर. प० प्रसार करे. वि० निवळे. प० प्रमार्जन करे.
__ अथ इहां अव्यक्त दुष्ट रहिवो स्थानक ने विषे अनें दुष्ट गमन विचरवो पिण दुष्ट कह्यो ते अव्यक्त नों अर्थ इम कह्यो छै। जे १६ वर्ष मांहि ते वय अव्यक्त, अनें निशीथ नों अजाण ते सूत्र अव्यक्त, ए तो गच्छ माहि रह्या नी स्थिति। अनें गच्छ माहि थी निकल्या ने ३० वर्ष माहि वय अव्यक्त अनें नवमा पूर्व नी तीजी वत्यु भण्यो नहीं ते सूत्र अव्यक्त । ते व्यक्त अव्यक्त नींचो भंगी श्रुत अव्यक्त. अने व्यक्त. तेहनें एकलो रहिवो न कल्पे। तथा वय अव्यक्त अने सूत्र व्यक्त तेहने पिण एकल पणो न कल्पे। तथा सूत्र अव्यक्त अनें वय अव्यक्त ने पिण एकल पणो न कल्पे। अनें सूत्र करी व्यक्त अनें वय करी व्यक्त गुरु ने आदेशे तेहनें एकल पणो कल्पे । इहां पिण नवमा पूर्व नी तीजी पत्थु भण्या बिना अव्यक्त ने एकल रहिवो विचरवो बर्यो। तो जे श्री वीतराग नी आज्ञा लोपी ने एकल रहे त्यां ने साधु किम कहिये । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ५ बोल सम्पूर्ण।