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earfaraधिकारः ।
जाती वलि वाहिरे पासिय पाणे गच्छेजा । से अभिक्कमपसारे माणे विणिय मागे संपलिमज
माणे संकुंच माणे माणे ॥३॥
( श्राचारांङ्ग श्रु० १ श्र० ५ उ०४ )
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गा० ग्रामानुग्राम विचरतां एकाकी साधु ने दु० दुष्ट मन थाई जावतां भावतां - गमतां उपसर्ग ते उपजे अरहन्नक नी परे भलौ न थाइ तथा. दु० दुष्ट पराक्रम नों स्थानक एकाएकी ने भ० थाइ एतावता एकाकी स्थानक न पामे स्थूल भद्र वेश्या ने घरे गया साधु नो परे इम समस्त ने थाइ किन्तु जेहवा न होइ ते कहे है. अ० अव्यक्त साधु ने जे सूत्रे करी अव्यक्त तथा वय करी अव्यक्त सूत्रे करी अव्यक्त ते कहि. जिया श्राचाराङ्ग पुरो सूत्र थकी भगयो न दु गच्छ में रह्या साधु नी स्थिति अनें गच्छ थकी निकल्या ने नवमा पूर्व नी तीजी वत्थु भणी न होई ते सूत्र अव्यक्त तथा वय करी अव्यक्त ते कहिये जे गच्छ माहि रह्यो १६ वर्ष में व अने गच्छ बाहिर ३० वर्ष माहि ते वय अव्यक्त हुई. इहां अव्यक्त नी चउभङ्गी है. सूत्र अ वये करी अव्यक्त तेनें एकलो रहिणो न कल्पे. संयम अनें आत्मा नौ विराधना थाइं ते भयी पहिलो भांगो थाइ तथा सूत्रे करी अव्यक्त वये करी व्यक्त ते हनें पिया एकल पणो न कल्पे. अगीतार्थ पणे संयम अनें आत्मा नी विराधना थाइ ए बीजो भांगो तथा सूत्रे करी व्यक्त अनें बय करी अव्यक्त तेहनें पिया एकलो न कल्पे बाल पथा ने भावे सर्व लोक पराभववानों ठाम थाह तीज भांगा तथा सूत्र ने वये करी व्यक्त एहनें गुरु ने आदेशे एकलचर्या कल्पे. पिया आदेश बिना न कल्पे. जे भी गुरु आज्ञा बिना एक्लो रहे तेहवा ने पिया घणा दोष उपजे. परं ते दोष गच्छ माहि रह्या ने न उपजे गुरु ने आदेशे प्रवर्त्ततां घणा गुण उपजे तिणे दोष नहीं. भि० साधु ने वली कर्म वशी एक गुरु नों पिण वचन न मानें ते कहे है. व० कियहि एक तप संयम ने विषे सीदावता हुंता श्री गुरु धर्मवचने. ए० एक अज्ञानी चोया प्रेरया हुता. कु० क्रोध ने' वशी हुवे. म० मनुष्य इम कहे हु घणा एतला साधु माहि रहि न सकूं कांई में स्यूं करस्यो पण सहू इम वर्त्ते छे तेहने स्यूं न कहो एणी परे ते. उ० अभिमान ने आपणपो मोटो मानतो. न० मनुष्य. मो० प्रवल मोहनीय ने उदय मूरको कार्य अकार्य विवेक विकल थाइ ते मोहे माहितो छतो मान पर्वते चढ्यो अति क्रोधे करो गच्छ थकी निकले तेहने ग्रामानुग्राम एकाकीपणे हिंडता जे हुइ ते कहे छे. सं० जे अव्यक्त एकाकी हिडता ने बाधा पीड़ा ते उपसर्ग थकी ऊपनी घणी थाइ मु० चली २ उल्लंघता दोहिली. केहवा ने दुरतिक्रम कहिये ए अर्थ. अ० ते पीड़ा अहियासवा नों अजाणता अणदेखता ने पीड़ा लांघतां खमतां दोहिली हो वो देखाड़ी भगवान् वली शिष्य प्रते कहे है. ए० एकला रझा ने आवाधा अतिक्रमतां