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भ्रम विध्वंसनम् ।
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से गामंसि वा जाव राय हाणिसिवा अभिनिवगडाए. अभिनिदुबाराए. अभिनिक्खमण पवेसाए. कप्पइ निग्गंथाणय निग्गंधीणय एकत्तउवत्थए ।
(वृहत्काल उ० १ वो० ११)
से० ते गा ग्रामादिक ने विषे जा० यावत पाछला वोल लेवा. राजधानी. तिहां अ० जुदा २ गढ़ हुवे. अ० जुदा २ वारणा हुवे. जुदा २ निकलवा ना पेसवा ना मार्ग हुवे. तिहां. कल्पे साधु ने साध्वी ने एकठा वसवा.
अथ इहां घणा वारणा ते प्रामादिक में साधु साध्वी ने रहिवा कह्या। ते प्रामादिक ना घणा निकाल आश्री पिण स्थानक ना घणा वारणा आश्री नहीं। तिम बहुश्रुति एकला ने घणा वारणा निकाल पैसार हुवै ते प्रामादिक में न रहिवो। ए पिण ग्राम ना घणा निकाल आश्री कह्या। पिण स्थानक आश्री नहीं। अने जे एक स्थानक ना घणा बारणा हुवे तिहां एकल बहुश्रुति ने न रहिवू इम कहे तिण रे लेखे एक स्थानक ना घणा निकाल हुवे ते स्थानक साधु साध्वी ने पिण भेलो रहिवू । पिण ए तो प्रामादिक ना घणा दरबाजा तिहां बहुश्रुति ने एकलो रहिवू बर्यो छै, तो अल्पश्रुति ने किम रहिवो। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो ।
इति ३ बोल सम्पूर्ण ।
तथा एकलो रहे तेहमें ८ अवगुण कह्या ते पाठ लिखिये छ ।
पासह एगे रूवेषु गिद्धे परिणिजमाणे एत्थ फासे पुणो पुणो. आवंतिकेआवंति लोयंसी आरंभजीवी ॥७॥ एएसु चेव आरंभजीवी एत्थविबाले परिपञ्चमाणे रमति पावेहिं कम्मेहिं असरणं सरणंति मण्णमाणे ॥८॥ इह मेगेसिं एग