Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 445
________________ २८८ भ्रम विश्वसनम् । माया काटाई करी जं. नि. पर में वन्वये करी गूढ माया करी. अ. झूठा वचन बोल करी. कु० छुड़ा सोला कूड़ा मा पा करी ने, ति तिर्यञ्च नों यायु कर्म बन्ध होय. म. मनुष्य नो अायु कम नो पृच्छा. गोल गोतम ! ५० प्रकृति भट्टोक. ५० प्रकृति नो विनीत. सा. दाया ना परिगामे करी. श्र० . गरम पाता करी ने म मनुष्य नों घायुषो. जा. यावत कर्म प्रयोग बंधे । दे० देवता ना पाकर पीर नी पृच्छा. गो हे गोतम ! स० संयम ते सराग संयमे करो. संयमा संयम ते श्रावक पथा करी बाल तप करी तापसादिक. अ० अकाम निर्जरा करी. दे० देवता नों श्रायु कर्म ना शरीर प्रशाय बंधे. ॥४१॥ सु० शुभ नाम कर्म पृच्छा. गो हे गोतम ! का काया ना सरल एगे की भावशा सरल पकरी भा० भाषा नों सरल परमो. अ. गीतार्य कहे तेहवो करको विमान कझो तेथे करी. सुः शुभ नास कर्म शरीर जा. याप्त प्रयोग वधे. अ० अशुभ नामक पुः पृच्छा. गो गौतम ! का काया नों वक्र पणो. भा. भाव रो चक्र पयो मा मामाचक्र प. वि०विराम्बाद ते विपरीत करतो. अ.अशुभ नाम कर्म. मा० यावत प्रयोग वधे ॥४२॥ हु० उच्च गोत्र कर्म शरीर नी पृच्छा. गो. गोतम ! जा० जाति नों मद नहीं करे कु कुल नों मद नहीं करे. ब० बलनों मद नहीं करे. त• तप नों मद नहीं करे. सु० सूत्र नों सद न करे ई श्वर गद ते टकराई ना मद न करे. णा ज्ञान ते भणवा नों मद नहीं करे. उ० एतला बोने करी ऊन गोल वधे. नी० नीच गोत्र कर्म शरीर. जा. यादत. प० प्रयोग बंधे ॥४३॥ शंः अन्तराय कर्म नी पृच्छा. गो. हे गोतम ! दा० दान नी अन्तराय करी. ला० लाभ नी अन्तराय करी. मो. मोगनी अन्तराय करी. उ० उपभोग नी अन्तराय करी. वी. वीर्य अन्तराय को. गन्तराय कर्म शरीर प्रयोग नाम कर्म में. उ० उदय करी. अं० अन्तराय कमी शरीर प्रयोग बरे ॥४॥ अ आ निपजाबा री करणी सर्व जुदी २ कही छै। तिणमें ज्ञानावर परि. दर्शावरणीय. गोहनी, अन्तराय, ४ ए कर्म तो घण घातिया छै. एकान्त पाप छै। अमें एकान्त सावध करणी थी निएजे छै । तिण करणी री तीर्थङ्कर नी आमा नहीं। असाता पदनी. अशुभ आयुषो. अशुभ नाम. नीच गोत्र. ए ४ कर्मणि एकान पाप छै. ए पिग एकान्त सावध करणी सू निपजे छै। ते मर्च पाप कर्म सापा! ते तो १८ पाप स्थानकव्या लागे छै। अने साता वेदना. शुभायुमो. शुभ नाम ऊब गोत्र. ए ४ कम पुणय छ । शुभ योग प्रया ' लागे छ । ते करणी निरा री छ। जे करतां पाप कटे तिण करणी में तो शुभ योग निर्जरा कहीजे। शुभ योग प्रवर्ती नाही रा उदा खू महजे जोरी दावे घुगाय बंधे। जिम गेहूं निपजतां स्वाखलो सहजे निपजे छ। लिम दवादिक भली भारणा करताभ योग प्रवर्तका युगध सहजेइ लागे छ। तिम निर्जरा री करणी

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