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निरवद्य क्रियाधिकारः ।
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करतां कर्म कटे अने पुगय बंधे। पिण सावध करणी करता पुणय निपजे नहीं। ठाम २ सूत्र में निरवद्य करणो सम्बर. निर्जरा नी कही छै। पुणय तो जोरी दावे विना वाञ्छा लागे छै। ते किम शुद्ध साधु में अन्नादिक दोधो तिवारे अब्रत माहि लं काढ्यो व्रत में घाल्यो। तेहथी व्रत नीपन्यो. शुभयोग प्रवा. तिण सूं निर्जरा हुवे । अनें शुभयोग प्रवर्ते तठे पुणय आपेही लागे छै। तिण तूं आठ कर्म अने ८ कर्म नी करणी उत्तम हुवे। ते ओलख में निर्णय करे। सूत्र में अनेक ठामे निर्जरा सं. इज पुणध रो बन्ध कह्यो ते करणी निरवद्य आज्ञा माहि छ। पिण सावध आज्ञा वाहिर ली करणी थी पुणय बंधतो किहां इज कह्यो नथी। जे धन्नो अणगार विकट तप करी सर्वार्थ सिद्ध उपन्यो। एतला पुणय उपाया। ए पुणय भली करणी थी बंध्या के आज्ञा वाहिर ली करणी थी बंध्या। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ११ बोल सम्पूर्ण।
केतला एक आज्ञा वाहिरे धर्म ना थापणहार कहे जो आज्ञा बाहिरे धम न हुवे तो धर्म रुचि ने गुरां तो कडुमो तुम्बो परठण री आज्ञा दीधी। अनें धर्म'रुचि पीगया। ए आज्ञा वाहिर लो कान कीघो तो पिण सर्वार्थ सिद्ध गया आराधक थया, ते माटे आज्ञा बाहिरे पिण धर्म छै। तत्रोत्तरम्- -
धर्म रुचि तो :आज्ञा लोपी नहीं. ते आज्ञा माहिज छै। ते किम् गुरां • कह्यो ए तुम्बो पीधो तो अकाले मरण पामसी। ते माटे एकान्त परठो इम मरवा
नों भय बतायो । पिण इम न कह्यो । जे तुम्बो पीधो तो विराधक थास्यो। इम तो कह्यो नहीं। गुरां तो मरवा नों कारण कही परठण री आज्ञा दीधी छै। ते पाठ लिखिये छ।
ततेणं धम्मघोसे थर तस्स सालतियस्स हावगाढस्त गंधेणं अभि भूय समाणा ततो सालाइयातो