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- श्रमविध्वंसनम् ।
अथ इहां धर्म घोष स्थविर धर्मरुचि ने भद्रीक अमें विनीत को छै। इग न्याय धर्मरुचि तुम्बो पोधो ते आज्ञा माहि छै, पिण बाहिर नहीं। डाहा हुवै तो विचारि जोइजो।
इति १२ बोल सम्पूर्ण ।
इमहिज सर्वानुभूति सुनक्षन ने बोलको बर्यो। ते पिण बोलवा रा कारण माटे अने दोनूं साधु पंडित मरण पारे कर लीवो ते माटे आज्ञा माहि छै। जब कोई कहे-वालवा रो कारण तो कह्यो नथी तो. वालवा रो क रण किम जाणिये इम कहे तेहनों उत्तर-जिबारे आनन्द स्थविर गोचरी गया अनें गोशाले गाणिया रो दृष्टान्त देइ आनन्द स्थविर ने कह्यो। तू वोर में जाय ने कहीजे जे म्हारी बात करसी ते हूं बाल ना खस्यूं। अनें तूं जाय वीर ने कहिसी तो तोने वालू नहीं । तिवारे आनन्द स्थविर बीर में आवी कह्यो। भगवान् कहो हे आनन्द ! गौतमादिक साधां ने जाय में कहो। गोशाला सूं धर्मचोयणा कोई कीजो मती गोशाले साधां तूं मिथ्यात्व पविजो छै। ने भणी तिवारे आनन्द गौतमादिक साधां ने कह्यो। जे गोशाले कह्यो म्हारी बात कीधी. तो बाल नाखस्यूं। ते भणी भगवान् कह्यो छै। गोशाला थी धमचोयणा करज्यो मती। गोशाले साधां सूं मिथ्यात्व पड़िवजो छै ते साटे इहां गोशाले कलयं बाल नाखस्यं। ते वालवा रा कारण माटे भगवान् बज्यो छै। पछे गोशालो आयो लेश्या थी खाली ६यो पछे वलवा रो भय मिट गयो। तिवारे भगवान साधां ने एहयो कह्यो छै। ते पाठ लिखिये छ।
एवामेव गाशाला वि मंलिपुत्ते ममं बहाए सरीरगंसि गेयं णिसिरित्ता हततये जाब विखट तेये तच्छंदेणं अज्जोतुम्भे गोसालं मं बलिपुत्तं धम्मियाए पड़िचोयणाए पडि- .
चोएह ।
भगवती १० १५ ।