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निरवद्य क्रियाधिकारः।
खंति खमणयाए. जीइंदियाए. अमाइल्लयाए. अपासत्थयाए. सुसामन्नयाए. पवयण वच्छल्लयाए. पबयण उज्झावणयाए ॥११४॥
(ठाणांग ठा. १०)
भागमोई भवांतरे रूडूं देव पणो तदनंतर रूडू मनुष्य पणू पाम द० दश स्थानके करी जीव अने मोक्ष ने पामवे कल्याण छै तेहने एो अर्थे. क० कर्म शुभ प्रकृति रूप. ५० बांधे ८० ते कहे छै. ए दश बोल भद्र कर्म जोडवू. अ० छेदे जेणे करी आनन्द सहित मोक्ष फलवर्ती ज्ञानादिक नी आराधना रूप लता, देवेन्द्रादिक नी ऋद्धि नूं प्रार्थवा रूप अध्यवसाय ते रूप कुहाड़े करी ते नियाणू ते नथी जेहने ते अनिदान तेणे करी १ सम्यक्त्व दृष्टि पणे करी २ जो सिद्धान्त ना योग में वहिवे अथवा सगले उछरङ्ग पणा रहित जे समाधि योग. तहने. करखे करी ख० खमाई करी परिषह खमवे करी क्षमानु ग्रहण कहिउ ते असमर्थ पणे खमवा नं निषेध भणो समर्थ पणे खमे. इ० इन्द्रिय में निग्रहवे करी. अ. मायावी पणा रहिव. अ० ज्ञानादिक ने देश थको सर्व थकी वाहिर तिष्ठे ते पार्श्वस्थ देश थकी ते शय्यातर पिण्ड अभिहड नित्यपिण्ड अग्रपिण्ड निकारणे भोगवे. सु० पार्शस्थादिक ने. दोष ने वर्ज वे करी शोभन श्रमण पण तेणे करी भद्र. ५० पवयण प्रकृष्ट अथवा प्रशस्त वचन आगम ते प्रवचन द्वादशाङ्गी अथवा तेहनों अाधार सङ्घ तेहनों वात्सल्य हितकारी पणे करी प्रत्यनीक पण टालिबूं तेणे करी भद्र. ५० द्वादशांगी ने प्रभाव यूँ ते० धर्म कथावाद नी लब्धि करी यश, उपजावि वू. तेणे करी भद्र कर्म करे. ए भद्र कल्याण कर्म करणहार ने
__ अथ-अठे १० प्रकारे कल्याणकारी कर्म बंधता कह्या-ते दसुइ बोल निरवद्य छै । आज्ञा माहि छै। पिण सावध करणी आज्ञा वाहिर ली करणी थी पुण्य बंध कह्यो न थी। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति ६ बोल सम्पूर्ण।
तथा भगवती श० ७ उ०६ अठारह पाप सेव्यां कर्कश वेदनी बंधे, अनें १८ पाप न सेव्यां अकर्कश वेद नी बंधे इम कह्यो। ते पाठ लिखिये छै।